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प्रश्नव्याकरण मूत्र को सूक्तिया
सतत्तर
२०. समार मे 'मत्य' ही सारभूत है।
सत्य महासमुद्र से भी अधिक गभीर है।
२१ सत्य, चद्र मडल से भी अधिक मौम्य है ।
सूर्यमण्डल से भी अधिक तेजस्वी है ।
२२. ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए जो हित, मित और ग्राह्य हो ।
२३ सत्य भी यदि मयम का घातक हो तो, नहीं बोलना चाहिए ।
२४. अपनी प्रगना और दूसरो की निन्दा भी असत्य के ही समकक्ष है ।
२५. क्रोध में अधा हुआ व्यक्ति सत्य, शील और विनय का नाश कर
डालता है। २६. मनुप्य लोभग्रस्त होकर झूठ बोलता है ।
२७. भय से डरना नही चाहिए । भयभीत मनुष्य के पास भय शीघ्र आते है।
२८. भयभीत मनुष्य किसी का सहायक नही हो सकता।
२६. भयाकुल व्यक्ति ही भूतो का शिकार होता है ।
३०. स्वय डरा हुआ व्यक्ति दूसरो को भी डरा देता है।
३१. भयभीत व्यक्ति तप और सयम की साधना छोड़ बैठता है।
भयभीत किसी भी गुरुतर दायित्व को नहीं निभा सकता है ।