SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात ६१ राख लिया छै । थे म्हाने केहेक हाथी, क्युंहेक सोनो, थाहरै अखाड़ो छै तिणमें रंगराय पातर छै सु म्हानूं दो।" तरै ठाकुरां रांणाजोसूं कह्यो-"हाजीखांन भलो माणस छै नै विखायत थको छ । दीवांणजी वडो उपगार कियो छै । सु हाजीखांन आ वात कहाड़ियांरो जुगत न छै ।" सु आ वात दीवांण मांनी नहीं। यां ठाकरांनै मांडां मेलिया । . अ अजमेर गया । आ बात कही तरै हाजीखांन कह्यो-"म्हारै देणनै ... तो क्युही नहीं। नै पातर तो माहरी बैरBA छै।" तद इण वात ऊपर हाजीखांन नै रांणारै अदावद हुई । तरै रांणारा परधानांनूं तो सीख दीवी10 | नै राव मालदे कनै आदमी २ आपरा11 मेलिया । . म्हारी मदत करावो । तरै रावजी असवार १५०० रा० देवीदास जैतावत साथै दे नै मेलिया। देवीदास जैतावत, रावळ मेघराज, लखमण भादावत, जैतमाल जैसावत, बीजा ही घणा ठाकुर साथै दे नै मेलिया । सु औ3 पिण अजमेर आया। भेळा हुवा। रांणो आप पिण उदैपुरसूं चढियो । दस देसोत4 साथै हुवा । रांणो हरमाडै आयो। हाजीखांन पिण हरमाड़े आयो। बले वीचरा तेजसी नै बालेसो . सूजो फिरिया। दीवांणजीनूं कह्यो-“वेढ नै कीजै। पांच हजार " पठाण नै हजार राठोड़ दोरा मरसी।' सु आ वात दीवांण मांनी . नहीं। खेत बुहारीयो । अणी बांटी16 । त?17 हाजीखांन दाव कियो । साथ थो सु आगे ठेल ऊभो कियो । नै असवार हजार १००० सूं आय भाखरीरै ओटै जाय ऊभो रह्यो । नै रांणो आप हरोलारा20 . अणी मांहे थो सु गोळरा अणी मांहे जाय ऊभो रह्यो। तरै हाजीखांननूं आ खबर आई तरै हाजीखांन गोळरी अणी माथै तूट पड़ियो21 । तरै सास 1 कितनेंक । 2 कुछ । 3 तुम्हारे पास स्त्रियोंका दल है उसमें रंगराय नामकी एक नर्तकी है, जिसको मुझे दो। 4 हाजीखान भला आदमी है और संकटग्रस्त है। 5 अतः हाजीखानको यह बात कहलवाना योग्य नहीं है। 6 इन ठाकुरोंको बलात् भेज दिया । 7 नर्तकी। 8 मेरी 8A. स्त्री। 9 शत्रुता उत्पन्न हो गई। 10 रवाना किया। 11 अपने। 12 दूसरे भी। 13 ये। 14 दस बड़े ठिकानोंके जागीरदार। 15 रणक्षेत्रको साफ किया। 16 सेनाके अग्रभागमें रहने वाले वीरोंका बंटवारा किया। 17 वहां हाजीखानने एक चाल चली। 18 अपनी सेनाको आगे भेज कर खड़ी कर दी । 19 आड़ में । 20 सेनाके अग्रभागमें था सो पृष्ठ भागमें आ कर खड़ा रहा । 21 टूट पड़ा।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy