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________________ २७८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात नाचे रंग पूतळी इक गावं द्रक वावै । तिण पर सुर उछलंग संख सबदह उळावै ।। पेखवै सुरनर सयल पर धमधमंत सुर उच्छलग । तिण कारण सिद्ध नरेंद्र सुण ब्रखम तेणथी गो इरग ॥२॥ सरग यंद्र' सल' हीयै राव पाया" वासग' । मात लोक नूं राव कहां हव अोपम कासग" || हेम सेत मंझार न को हिब' अत्य' न रावह । इत्थ चवत्थो राव हुवत जंपिय सरावह ।। त्रिण राव त्रिणेही भवणपति, सिद्ध लल्ल इम उच्चरै । इत्थ चवत्यो राव हुवै, तो दिव जळतो कर धरै ॥३॥ उंदर दर खण मर,13 पैस भोगदै भुयंगह । हळ वहि मरै वहिल्ल, हरी जव चरै तुरंगह ।। सूंब धन संचइ मरे, वीर विद्रवै विवह पर । पंडित पढ़ गुण मरै, मूढ़ भूचें रायां हर ॥ सूजांण राय गूजर धणी, करां वीनती क्रन्न सुअ'। हम पढ़ां गुणह पावै अवर, कहा परख जैसिंघ तुम ॥४॥ वीस तीस चाळीस साठि सित्तर सितहत्तर । भट्ट प्रांण समप्पिया, सिद्ध केकाण' विवह पर । वीस ढाल दस ढोल तीस नेजा इक डंडह । छत्र ढाळंत गैघटा दिद्ध जैसिंघ नरंदह ॥ मारियो दळद्र' दस लक्ख दे, इम उपाय अंकुश कियो । . हड़हड़े भट्ट ताहरै हस्यो सिद्धराव एतो. दियो ।।५।। - I नेत्र चलाती है। 2 जिससे डर गया। 3 स्वर्ग। 4 इन्द्र। 5 शल्य रूप । 6 पातालमें। 7 वासुकी। 8 मृत्युलोक । 9 किससे । 10 अब । II धन। 12 चौथा। 13 चूहा वेचारा विलको खोद कर मरता है। 14 वैल । 15 कृपण। 16 पुत्र । 17 घोड़ा। 18 हाथियोंकी घटा। 19 दारिद्रय । 20 तव । . वि०-इस एकादश रुद्र महालयके संबंधों कहा जाता है कि इसका मुख्य मंडप इतना विशाल था कि इसमें १६०० स्तम्भ थे और इस पर चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्रायें खर्च : हई थीं। इसका अनुपम शिल्प, विशालता और स्थापत्य-कौशल अव भी उसके खंडहरोंमें देखा जाता है। इस रुद्र महालयको गुजरातके महाराजा मूलराज सोलंकीने बनवाना प्रारंभ किया था जो उसके प्रसिद्ध पौत्र सिद्धराज सोलंकीके समयमें संम्पूर्ण हुआ था। इस विख्यात महालयके ११ खंडोंमें ११ ज्योतिलिंग स्थापित थे।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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