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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २६७ .. सेलो' । च्यारे ही भाई सिंघासणरी पाखती बैसो । कामदार परधान काम चलावसी । हासल आवसी सु च्यारै भाई वांट लेसी । रजपूत च्यारांनूं प्राय जुहार करसी ।" तरै प्रा वात च्यारांई कबूल कीवी। कितराइक दिन इण भांत काम चालै छै । सोळंकी बीज अठै आयो। बीजरो भाई राज चावोडारै परणियो थो। तिणरै पेट मूळराज बेटो हुवो थो सु चावड़ारो भाणेज छै । नै राज तो लाखाजी कनै रह्यो नै राजरो बेटो पाटण छै । तठे बीज प्रांधो प्राय रह्यो छै । सु चावड़ा च्यारूई तीजे-पोहररा' नदी सासता झूलण जाय तरै' कहै-“सिंघासण, गादी, छत्ररी रखवाळीनूं किणनूं राखसां'" । प्रापांनूं तो पोहर दो पोहर उठे लागसी ।" तरै च्यारै भायां चावड़ां विचारनै कह्यो"अठ वांस भाणेज मूळराजनूं राखो । ओ गादी बैस वांसलो कामकाज चलावसी ।' सु इण भांत मूळराजनूं वासै गादी बैसाण जाय । श्राप प्रावै तरै गादी उरी लेवै । सु मूळराज वळ-बळ आवटै15 । तरै बीज एक दिन अांधै-अांधै आपरा भतीजा मूळराजरी छाती हाथ फेरनै कह्यो-"बेटा ! इतरो दूबळो कुण वास्तै ?" तरै मूळ राज गादी बैसाण उठावरणरी वात सारी काकानूं कही । तरै बीज कह्यो-'आज तोनूं वांसै राखै तरै तूं मत रहै।" चावड़ा कहसी, कुण वास्तै ? तरै तूं कहै, “म्हारो हाल-हुकम को मानै नहीं, तो हूं इण गादी बैसनै कानूं करां19 ?" तरै चावड़ा बेअकल हुता सु कामदारांपरधांनां सारांनूं तेड़नै कह्यो -"मूळराज कहे सु किया करजो।" . I सिंहासन और छत्र बीचमें रख दिये जाय। 2 चारों ही भाई सिंहासनके पास वैठ जाओ। 3 मालगुजारी आयेगी वह चारों भाई बाँट लेंगे। 4 राजपूत (ठाकुर लोग) चारोंको पाकर जुहार करेंगे। 5 जिसकी स्त्रीकी कोखसे मूलराज नामका बेटा हुआ था जो चावड़ोंका भानजा है। 6 पास । 7 तीसरे पहर । 8 निरंतर नहानेको जावें। 9 तब । 10 किसको रखेंगे। II अपनेको तो पहर दो पहर उधर लग जायगी। 12 यहां पीछे अपने भानजे मूलराजको रख दो। 13 यह गद्दी पर बैठ कर पीछेका काम-काज चलायेगा । 14 ये पावें तब उससे गद्दी ले लेते हैं। 15 इससे मूलराज (अपमानकी ज्वालासे) जल कर दुखी होता है। 16 वेटा ! इतना दुर्बल क्यों ? 17 आज तुझको (गद्दी पर बैठनेके लिए) पीछे रखें तो तू मत रहना । 18 मेरी आज्ञा कोई मानता नहीं। 19 तो मैं इस गद्दी पर बैठ करके क्या करू ? 20 चावड़े मूर्ख थे इसलिये उन्होंने अपने कामदार-प्रधान इत्यादि सवको बुलवा कर कहा।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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