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________________ २६८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात 2 1 तठा पर्छ मूळराजरो हाल - हुकम हालण लागो' । न चावोड़ांरी जांणहार, सु दिन घड़ी ४ चढ़तेरा वागां, बावड़ियां, तळाव सैल जाय सुरात घड़ी ४ गयां पाछा घरे ग्रावै । नेजे मीर वाळी वात मांड रही छै । राजरी को खवर लै नहीं" । कांमदार रजपूत सारा चावड़ांथी श्रखता' हुय रह्या छे । मूळराजरो हाल हुकम हुवो । सु मूळराज वडो राहवेधी छै । वीज काकी ग्रांधो वलाय-रा-बंधरा है' सु चावड़ांरो माल ऊधमनै' सारा रजपूत, कांमदार, खवास, पासवान, महाजन लोग सारा ग्रापरा कर राखिया छे । सारांरो दिल हाथ लियो" । हमैं धरती लेणरो विचार वीज ने मूळराज करे छे। सु मूळराजरी मा छांनी कठैक रहने वात सुरगती हुती, सु किणही सूल उपरा पग वाजिया । तरै काके वीज कह्यो - " मूळराज, देख ! किणरा 1 .10 11 14 5 ク 18. 19 पग वाजिया " " तरे मूळराज वांस दोड़ियो" । श्रागे देखें तो आपरी मां छै, तिका मूळराजने देखने कहण लागी - " तूं नै थारो काको म्हारा भायांनूं मारणरो विचार करो सु कुरण वास्ते ? इणां थांसूं कासूं वुरो कियो ?" तरे मूळराज मानूं कह्यो - "थांनूं काकोजी तेड़े छै" " या नीचे पावड़ियां उतरण लागी, तरै इण दिठो – “ग्रालोच वार फूटसी ; धरती हाथ नहीं आवै । तरै माथै महँ भटकारी दी, माथो तूट पड़ियो । काका कनै पाछो आयो । काके बीज पूछियो 20 21 22 23 I जिसके बाद मूलराजकी ग्राज्ञा चलने लगी । 2 और चावड़ोंकी जाने वाली (चावड़ोंका शासन जानेका संयोग ) । चार घड़ी दिन चढ़ते ही । 4,5 वागों, वावड़ियों और तालावों पर सैर करनेको चले जायें जो चार घड़ी रात बीत जाने पर घर पर लौटते हैं, मीर नेजेके समान अपना ग्राचरण बना रखा है। 6 राज्यकी कोई खबर नहीं लेता । 7 क्रोधित, नाराज | 8 मूलराज बड़ा दूरदर्शी है । 9 उसका अंधा चाचा वीज गजवका चतुर है, खूब चालाक है | 10 खर्च करके । II अपने बना लिये हैं । 12 सबके दिल अपने हाथमें ले लिये 1 13 व वीज और मूलराज पाटनकी धरती अपने अधिकारमें ले लेनेकी सोच रहे हैं । 14 सो मूलराजकी माँ कहीं छिपी रह कर बात सुनती थी । 15 सो किसी प्रकार उसके पाँवोंकी आहट हो गई । 16 यह किसके पाँवोंकी ग्राहट हुई ? 17 तव मूलराज पीछे दौड़ा। 18 इन्होंने तुम्हारा क्या बुरा किया ? 19 तुमको काकाजी बुलाते हैं | 20 यह सीढ़ियोंसे नीचे उतरने लगी । 21 तव इसने देखा । 22 मंत्ररणा वाहिर फूट जायेगी तो फिर यह वरती हाथ नहीं ग्रावेगी । 23 तब उसके सिर में तलवारका झटका मार दिया ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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