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________________ २६४ ] मुंहता नैणसी ख्यात ठाकुर चावड़ानूं जणायो । वात कही-"इसड़ा आदमी दो भाई, नै ... च्यार-पांच आदमी साथै छै । तळाव उतरिया छै । यां घोड़ीरी वात . मांड* कही । तद पाटणरै धणी चावड़े खबर कराई । कह्यो-"इसड़ा अकलवंत अठे रहे तो राखीजै । पछै पाटणरो धणी आप चढ़ तळाव उणार' डेरै आयो, मिळिया, पूछियो-"कहो, थे कुण छो ? कठै रहो ?" तरै वीज आपरी वात मांडनै कही'-"म्हे सोळंकी तोडारा धणीरा बेटा, म्हारो दूजो दुमात भाई राज बैठो । म्हांनूं धरती माहैसूं परा काढ़िया । सु कितराहेक दिन तो म्हे उठै रह्या । सु हूँ तो अांखै जखम छ,13 नै म्हारो भाई नान्हो थो, तिको उठेहीज रह्यौ । हमें वीज कह्यो-"राज पिण मोटो हुवो, किणीकरै वास रहस्यां । हमार. तो द्वारकाजीरी जात जावां छो16 " पर्छ पाटणरै धणी चाव. वीज, राजरो घणो आदर कियो, विनाही जांणनै कह्यो-“राज म्हारै परणीजो; I" तरै वीज कह्यो-"हूं तो जखम परणीजूं नहीं,18 नै म्हारा भाई राजनूं परणावो।" तरै राज परणियो। इणानं चावो घणो माल, घणा गांव पटै दे राखिया। कितरैहेक दिने चावोड़ीर पेट मूळराज वेटो हुवो," तरै राजनूं वीज कह्यो-"प्रांपै" द्वारकाजीरी जात जावतां वीचमें अठै रह्या, सु हमैं चालो, द्वारकाजीरी जात तो कर आवां ।" सु पाटणसूं राज, वीज बेहूं चालिया। चावोडीनै मूळ राजनूं पाटण राखनै चालिया। सु जाईचे लाखै आ वात घोड़ी नै वछेरावाळी सांभळी छै, सु सांमां आदमी मेलनै देखणरै वास्तै I उन्होंने जा करके अपने चावड़े ठाकुरको सूचित किया। 2 इस प्रकारके । 3 तालाव पर ठहरे हुए हैं। 4 इन्होंने घोड़ीके संबंधकी सविस्तार बात कही। 5 तव । 6 ऐसे बुद्धिमान यहां रहें तो रखना चाहिये। 7 उनके। 8 कहो, तुम कौन हो ? कहां रहते हो ? 9 तब वीजने अपनी वात विस्तारसे कही। 10 हमारा दूसरा दुमात भाई राज्यकी गद्दी पर बैठ गया। II हमको देशमेंसे निकाल दिया। 12 सो कितनेही दिन हम वहीं रहे। 13 सो मैं तो अांखोंसे अंधा हूँ। 14 और मेरा भाई छोटा था, इसलिये वहीं रहा। 15 किसीके यहां जाकर रहेंगे। 16 अभी तो द्वारकाजीकी यात्राको जा रहे हैं। 17 विना जांच किये ही कहा, आप हमारे यहां विवाह कर लें। 18. मैं तो आंखोंसे अंधा, विवाह नही करू | 19 तव राजका विवाह हुआ। 20 इनको। 21 कितनेही दिन वाद चावड़ीके पेटसे मूलराज उत्पन्न हुना। 22 अपन। 23 यात्रा। 24 रख कर। 25 सुनी है।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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