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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात वात सोलकियां पाटण [ २६३ यांरी 3 5 6 8 10 11 13 राज बीज सोळंकी बेहू' भाई तोडारा धरणी, सु यांरो' बाप मुंवो, तरै बीजा दुमात भाई था तिकै राजरा धणी हुआ; नै यां' वेहू भायांनूं धरती मांहीथी परा काढ़िया । सु थोड़ासा साथ सामांनसूं तोडाथी नीसरिया, ' सु कठैक' प्राय रह्या । सुवडो भाई बीज तिको जनम ग्रांधो नै राज देखतो सु बाळक । सु कित रैहेक दिने कठैक धरती नजीक रह्या । वांसला भायां खबर न ली, तरै यां विचार दीठो ; “ठै रह्यां क्यूं नहीं; द्वारकाजीरी जात जावां" " तद द्वारकाजीरी जात चालिया सु कितरैहेक दिन 12 पाटण ग्राय उतरिया । सुपाटण चावोड़ा राज करै छै । सु रावळी वडी घोड़ी थी तिका चरवादार तळाव संपड़ावरण 14 वास्तै ले आयो । यांरो 15 तळावरी पाळ" डेरो छै । बैठा छै । नै पांडव 7 घोड़ियां चढ़ियां प्रावै छै, सु बीज कह्यो - "घोड़ी नीली भला पग मंडै 18 छै । वाखाण करण लागो । तर घोड़ी पांडव यांरै सांमो जोयो, १० ग्रांचो छै नै घोड़ियांरा रंग की‍ जांणै ? तितरै घोड़ी सुसती पड़ी" । तरै पांडव ताजणो वाह्यो तरै बीज पांडवनूं गाळ दीवी, को- “फिट रे, दारियागोला ! लाखरी वछैरीरी प्रांख फोड़ी * ! तरै पांडव को - "दारियो ग्रांधी कासूं कहे "" ?" पांडव घोड़ी ठांण ले गयो " । नै राते घोड़ी ठiण दियो, ,2" बछेरो घोड़ी कांणो जायो” । उ जायने आपरा 1 19 । 1 22 23 24 25 28 दोनों 2 इनका । 3 मरा । 4 दूसरे । 5 और इन दोनों भाइयोंको अपनी धरतीमेंसे निकाल दिया । 6 तोडासे निकले । 7 कहीं । 8 कितनेक 19 पिछले भाइयोंने । 10 तब इन्होंने विचार करके देखा | II चलें । 12 कितनेक दिनों बाद । 13 राजाकी । 14 नहलानेके | 15 इनका । 16 पाल, ऊंचा किनारा । 17 सईस । 18 नीली घोड़ीकी चाल अच्छी है | 19 प्रशंसा | 20 तब घोड़ीके सईसोंने इनकी ओर देखा । 21 क्या जाने ? 22 इतनेमें घोड़ी धीमी हो गई । 23 तब सईसने चाबुक मारा | 24 तव बीजने सईसको गाली दी, कहा - 'फिट रे दारीके गोले ! एक लाखकी बछेरीकी प्रांख फोड़ दी !' ( दारी = वेटी ) । 25 यह अंधा हमें दारिया क्यों कहता है ? 26 सईस घोड़ीको ठान (तवेले ) ले गया । 27 और रातको घोड़ीने बच्चा दे दिया ('घोड़ी ठांण देखो' मारवाड़ीका एक मुहावरा है; जिसका अर्थ होता है घोड़ी का बच्चा देना ) । 28 घोड़ीने काने बछेरेको जन्म दिया ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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