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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात 11 .12 14. [ २४६ छै । आदमी ५०० चीधड़ सिलह पैहर सांमा बैठा छै । आदमी - ५०० तोबची जांमकियां लगाय ऊभा रह्या छै । नै मालै इरण बेळा मां घोड़ीरै वास्तै भोमिया भोवा नाईनूं परधांनगी वीच मेलियो । भोवै कह्यो - "रावळजी थांरी घोड़ी मांगै छै ।" भोवै मूंडै कह्यो तठा पहली कुंभो तरवाररी मूंठ हाथ दे वेगो' ऊठियो । रावळरो पिण साथ मूंठे हाथ दे ऊठियो; नै कुंभे भोवानूं कह्यो - "म्हारी घोड़ी रावळनूं देने पर्छ म्हारो पलांण" रावळरी मा ऊपर मांडू, किना'' थारी मा ऊपर मांडू ?" इण प्राछटने " तरवार काढ़ी " । सोर हुवो । कुंभारै माथैरा केस ऊभा हुवा ' # । मुंहडो रातो - चोळ हुवो" । तरै" रावळनूं किणहीक जायने कह्यो — “कुंभानूं मारो तो छो", पिण एक वार रजपूतनूं सूरत चढ़ी छै'", मुंहडो देखण लायक छै ।" तरै रावळ बाहिर आयो, कुंभानूं दीठो ", राजी हुवा, उवार लियो" । कह्यो - "जैतमाळरी बेटी पतीनूं वींद चाहीजतो हुतो सु जुड़ियो" ।” पछै पती कुंभा कांपलियानूं परणाई | तिणरै पेटरा बेटा २ हुवा । खेतो, भोजो । बड़ा रजपूत हुवा । तठा पैहली" राव जैतमालनूं राव जगमाल मालावत मारियो थो सु जैतमालरो माल वैचीजतो थोसु हैंसा ५ किया। तीन तो तीनां बेटांरा किया । एक हैंसो पतीरो कियो ; नै हैंसो १ मालरो कियो नै उजाळो बछैरो जुदा किया था, कह्यो — "ओ हैंसो नै उजाळो बछेरो जैतमालरो वैर लेसी तिको लेसी 25 1 तरै प्रो हैंसो पती लियो । कौ 5 18 20 ग्रै 11 I दरवार में बैठा दिया है । 2 पांचसौ आदमी सिलहबख्तर पहन कर सामने बैठे हैं। 3 और पांचसौ तोपची जामगिये ( पलीते ) लगा कर खड़े हैं । 4 और मालेने इस समय भोमिया भाव नाईको उसकी प्रधानगीकी हैसियत से घोड़ी लेनेके लिये भेजा । 5 तुम्हारी | 6 जिसके पहले 1 7 झटपट । 8 को 1 9 दे कर । 10 जीन । II श्रथवा । 12 झपट कर । 13 निकाली । 14 खड़े हो गये । IS मुँह लाल हो गया । 16 तब | 17 कुंभाको मारते तो हो । 18 परंतु राजपूतको 19 कुंभेको देखा। 20 बलैया ली, बलि गया । 21 जैतमालकी बेटीको दूल्हे की श्रावश्यकता थी सो मिल गया । 22 इसके पहले । 23 मालका बँटवारा होता था उसके पांच भाग किये | 24 एक भाग मालका श्रीर उजाला नामके बछेरेका अलग किया गया था । 25 यह हिस्सा और उजाला बछेरा, जैतमाल मारा गया, उस वैरका जो वदला लेगा उसको मिलेगा । जो पौरुष चढ़ा है, उसे एक बार ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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