________________
२२० ]
मुंहता नैणसीरी ख्यात
-
पातरियां मंगाई' । तरै यां कह्यो — “महादेवजीरो देहुरो रावळीजी मंडायो सु पूरो हुतो तद म्हे रावळजीनूं ग्रापै पेस करता । पिरंग रावळीजी म्हां कना पात्र्यां मंगाई सु म्हांनूं सीख देवणी तेवड़ी ।"
5
छांडिया । पछे राजा हमीरदे चहुवांणरै गया । तरै हमीरदे घरगो आदरभाव कियो । पछै हमीरदे ऊपर इण वास्तै पातसाह प्रलावदीन प्रायो । वणा दिन गढ़रोहै रह्यो । पछे संमत १३५२ श्रावण वदि ५ हमीरदेजी कांम आया । पछे कितरेक दिन पातसाहजीर पंजुपायक थो सु किणी'क सूळ उठासूं छांडियो सुपातसाह कनैथी प्रायौ । सु उठे इसड़ो कोई नहीं, जु पायकपंजुसूं जीतै, पातसाहजीरे पायक ग्रागे हुता, सु सोह पंजु जीता ' । तरे पातसाहजी पंजुनूं फरमायो – “कोई तो खेल तिसड़ो पायक कठैही सूझे छं ?" तरै पंजु अरज की— "साहिवरी वडी मांड छै" । किरणही वातरी परमेसररै घरै कमी न छै । वणा इरण प्रथी ऊपर हुसी, सु मैं दीठा नहीं । नै रावळ कांनड़दे चहुवांण जाळोररो धणी, तिणरो बेटो वीरमदे, मो कनाहीज सीखियो छै", सुमो सारीखो खेलै छै ।" तरे पातप्ताहजी रावळ कांनड़दे सांमा लिखिया किया' । वोल कौल सुधा भेजिया । "एक वार वीरमदेनूंसताब" म्हां कनै भेज दीजो ।” आदमी फुरमांन ले जाळोर आया । कानड़देजी प्रापरा भाई बंधु, प्रधांन भेळा कर मिसलत करी । सारै कह्यो–“प्रापै पातसाहनूं रीस चाढ़िया छै" । दिल्लीस्वर ईश्वर है, अँ आरंभरांम'' छै, करण मतै सु करें । आगलो प्रापांनूं खून बगसै छै", मया कर वीरमदेजीनूं पातसाहजी तेड़े छै तो मेल दोर्जे " "
.8
1
-
112
13
I इस पर रावलजीने दो मनुष्य भेजे और वेश्याओं को मंगवाया | 2 तब इन्होंने कहा - महादेवजीका मंदिर रावलजीने वनवाना शुरू किया सो वह जब पूरा हो जाता तवं हम अपने ग्राप रावलजीको पेश कर देते, परंतु रावलजीने हमारे पाससे उन वेश्याओंको मंगवा लिया अतः हमको यहांसे निकाल देने का इरादा कर लिया है । 3 वादशाह के पास पंजू नामका एक मल्ल था जो किसी कारणवश छोड़ कर बादशाह के पाससे चला आया । 4 सबसे पंजू जीत गया। 5 परमात्माकी बड़ी रचना है । 6 मेरेसे ही सीखा है ! 7 तव बादशाहने रावल कान्हड़देसे पत्र-व्यवहार किया । 8 जल्दी 1 9 परामर्श किया। 10 हमने बादशाहको क्रोत्रित किया है । II करताधर्ता, सर्वाधिकारी । 12 वह अपने अपराधोंको. क्षमा करता है । 13 वादशाह कृपा करके वीरमदेवजीको बुलाता है तो भेज देना चाहिये ।