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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २१६ सु 1 पचीस हजार घोड़ारा धणी दिलगीर थका बैठा था, सुवात यूं सुणी, तरै बहू चढ़ने पैंडा मांहै कांधळनूं मिळिया । कह्यो - " म्हे सील कोल किया । म्हे रातीवाहो वसां एक तरफसू थे श्राजो ।” 1 9 थांरा कांमनूं छां, थां भेळा छां" । " देसां । कह्यो — “एक तरफसूं म्हे यूं कहिनै सीख कीवी । कांनड़देजी कनैं प्रायनै सोह वात कही" । पर्छ बीजें दिन साथ सारोही भेळो करने रातीवाहो दियो ? । एक तरफ मंमूसाह नै मीरगाभरू प्रापरो साथ लेने प्राया ने एक तरफसं कांदेजी फौज आई । रातीवाहो दियो । तठै पातसाही लोक घणो कांम आयो । पातसाह नीसरियो", फौज भागी । कहै छै - कांनड़ देजीरे साथ घणी पातसाही फौजांनं घेचियां, साथ मारता गया । पातसाहनै भांजने कांनड़जी सोमइया कनै श्राया " । महादेवजीरी पींडी हाथ घातने उपाड़िया सु तुरत उपड़िया सु महादेवजीरो लिंग सकरांणै थापियो । ऊपर देहुरो करायो । कांनड़देजी हिन्दुस्थांनरी बड़ी मरजाद राखी" । ममूंसाह मीरगभरू रावळ कांनड़देजी कनै रह्या । ठाकुराई सारू घणो रोजगार दियो । पिण पातसाहीरा रैहणहारा सु गायां मारै, सु हिंदवांरै खटावै नहीं । तरै रावळजी कह्यो" इणांनूं किरणहेक वात कर सीख देणी 14; तरै क्यूंहेक को"इणांरै धारू वारू पात्रियां छे सु मांगो, सु देसी नहीं; तरै पै परा जासी । तिण ऊपर रावळजी दोय मांणस मेलिया नै 1 5 I तब दोनों भाई सवार हो मार्गमें कांधलसे मिले। 2 हम तुम्हारे काम में मददगार हैं, तुम्हारे शामिल हैं । 3 कोल वचन किये। 4 हम रात्रि याक्रमण करेंगे । 5 इस प्रकार कह कर रवाना हुए । 6 कान्हड़देजी के पास श्राकर सब बात कही । 7 फिर दूसरे दिन सभी सैनिकों को इकट्ठा करके रात्रि याक्रमण किया । 8 बादशाह भाग कर निकल गया । 9 कहा जाता है कि कान्हड़देकी सेना भागती हुई बादशाही सेनाका पीछा करती हुई मारती गई । 10 बादशाही सेनाका नाश करके कान्हड़देजी सोमनाथके पास ग्राये । II महादेवजीकी पिडीको हाथ डाल करके उठाया तो वह तुरंत उठ गई और उसको सकरा में हो स्थापित कर दिया । 12 कान्हड़देजीने हिन्दुस्थानकी मर्यादा ( प्रतिष्ठा ) रख ली । 13 परंतु (गो-भक्षक मुसलमान) वादशाहत में रहने वाले, अतः गोवध करते हैं सो हिन्दुग्रोंको यह सहन नहीं होता । 14 इनको किसी बात के मिस यहाँ से निकाल देना । IS त किसी एकने कहा कि इनके पास धारू और वारू नामक दो वेश्याएँ हैं, उन्हें गांगी जांय; ये देंगे नहीं, तब अपने आप चले जायेंगे ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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