SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात , 8 तलाक छै जु वीच गढ़ मेल', विगर लियां यूंही श्राघो न जाय; सु हूं जातो हुतो सु कांनड़दे वात कहाड़े छै तो हूँ विगर जाळोर लियां हमैं हूं श्राघो न जाऊं, मोनूं तलाक छै ।" तितरं एक सांवळी" भंवती-भवती पातसाह वैठो थो तठे ऊपर ग्राई, तिरै पातसाह प्राप तुकारी दी सु लागो । सांवळी पड़रा लागी सुपातसाह पाखतीरा" तीरंदाजांनूं हुकम कियो, जु पड़रण न पावै । सु तीरंदाजां कवांणां संभाई, तीर चलावरणा मांडिया', सु तीरां करनै सांवळी पड़ण न पावै । तरै कांधळ बोलियो – “जु ग्रा तीरंदाजी मोनूं दिखाईजै छै ।” सु भैंसो १ साहुलो जिणरा सोंग पूंछ तांई हुवै', तिण ऊपर पखाल १ पांणीरी हुती सु नैड़ो आयो" । तरं कांधळ भैंसारे भटकारी दी सु सींग वढ़, पखाल वढ़ने भैंसारा दोय टूक किया" । तरवार धरती जाती रही । तितरै " ग्रा सांवळी पड़ी सु भैंसारा लोही मांहै नै पखालरा पांणी मांहै सांवळी वही गई । तरै कांधळ सवण विचारियो' - पातसाहरो कटक म्हां आगे यूं वह जासी" तरै तीरंदाजै कवांणांरी मूठ कांधळ सांमी करी । तरै सीहपातळो विचै प्रायो । कह्यो—“मैं तो हजरतसूं पैली ग्ररज की थी" तरै वां तीरंदाजांनूं मनै किया । पछै कांधळ उठासूं वारै प्रायनै जिण गाडा ऊपर महादेवजी था त प्रायो नै कह्यो - "पांगी तो विगर पियै सर नहीं नै धांन राज छूटां खासां'।” उठै श्रावात कहिनै गढ़नूं वळिया " । पातसाहरी हजूर ग्रमराव ममूसाह मीर गाभरूसूं, हरसरी खुटक छै नै गुरगाव्यां पगां उठांणती तीजै भाईनूं प्रापड़ियो थो, सुग्रा घणी वात छै 1 12 3 4 17 18 छोड़ कर 2 ग्रागे, दूर 1 3 चील पक्षी । 4 तीर । 5 पास वाले 1 6 यह गिरने न पाये । 7 तीर चलाने शुरू किये । 8 सो तीरोंके सतत चलते रहनेसे चील नीचे नहीं गिर रही है । 9 एक साहूला भैंसा जिसके सींग पूंछ तक होते हैं। 10 वह निकट ग्राया | II तव कांवलने तलवारसे ऐसा झटका मारा जिसने सींग और पखाल काट करके भैंसे के दो टुकड़े कर दिये । 12 इतने में । 13 वह गई । 14 तव काँघलने शकुन विचारे | 15 वादशाहकी सेना हमारे ग्रागे इस प्रकार वह जायगी । 16 पानी पिये विना तो चलेगा नहीं परंतु ग्रन्न ग्रापके छूट जाने पर ही खाऊंगा । 17 गढ़की ओर लोटे | 18 बादशाह के दरवारमें मम्मूशाह और मीरगाभरू ये दो उमराव थे, जिनके साथ एक तो हरमकी नाराजगी थी, दूसरा पैरोंकी जूतियां उठवाई जाती थीं, और भाईको पकड़ रखा था, यह वड़ी ग्रापत्तिजनक बात उनके लिये थी । तीसरा उनके
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy