SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात नै जिणरो गळो वाढ़ियो सू ही रजपूत थो; दोनूं थे गोठिया था। किणीहेक दिन थे एक छाळी मारी । तरै उण छाळीरा कान तें हाथसू साह्या नै गळे छुरी उण दीधी । सु वा छाळी मरने वा वैर हुई, नै पो थारो गोठियो उणरो मांटी हुवो, सु उण वैर मांगियो', सु ... उणरो गळो वाढ़ियो, ने यूं उणरों कान झालिया था सु थारा हाथ . वढ़ाया । म्हारो किसो दोस ?" तोही उण वांभगरो महादेव ऊपर . कोप मिटियो नहीं । पछै फिरनैं कासी गयो। उठे सिनांन गंगाजीमें . करनै कासी करोत लेण लागो । तरै करवतरै दैणहारै कह्यो"कांसूं मांगै छै ?" तरै कह्यो-"अठारो मांगियो लाभे छ ?" तरै इण कह्यो-“मांगियो लाभै छै, तो हूँ तिको अवतार पाऊं, जिको सोमइया महादेवरा लिंगनै उपाडनै अाला चांवा मांहे बांधूं।" तरै पाखती सगळा माणस ऊभा था, तिकां कह्यो'-"फिट ! फिट !! कासी करवत लेनै इसड़ो कांसू मांगै छै ?" तरै कह्यो-"क्यूं फेर विचारनै मांग' ।" तरै इण कह्यो— “एक म्हारो आधा बड़रो तिकांहूँ त्यां सोमइया महादेवनूं वांध्यानूं छोड़ावै । इण यूं कहे करवत लीधी" । सु प्राधा धड़रो अलावदी पातसाह हुवो । आधा .. धड़रो रावळ कानड़दे हुवो सोनगरो । वात पातसाहरो डेरो सकरांण जाळोररै गांव जाळोरसू कोस । हुवो। आ खवर कानड़देनें हुई, "जु महादेव सोमइयानं वांधनै पातसाह . ____ I तुम दोनों मित्र थे। 2 किसी दिन तुमने एक बकरीको मारा था। 3 पकड़े रहा। 4 सो उसने अपने वैरका बदला मांगा। 5 इसलिये उसका गला काटा गया और तेंने उसके कान पकड़े थे, इसलिए तेरे हाथ काटे गये । 6 क्या मांगता. है ? 7 यहांका मांगा हुपा (क्या अगले जन्ममें) मिलता है ? 8 तो मैं जो जन्म पाऊं, उसमें सोमनाथ महादेवके लिंगको उठा करके गीले (कच्चे) चमड़ेमें वांर्छ । 9 तव पासमें, जो सव मनुष्य खड़े थे, ... उन्होंने कहा कि काशीमें करवत ले कर ऐसा क्या मांगता है ? 10 कुछ फिर विचार करके मांग। II तव इसने कहा-"मेरे इस आवे धड़के द्वारा एक ऐसा व्यक्ति उत्पन्न हो जो . उस प्रकार बंधे हुए महादेवको छुड़ा दे। 12 इसने यों कह करके करवत लेली। 13 सो . . उसके आधे धड़का अलाउद्दीन वादशाह हुआ और आधे घड़का रावळ कान्हड़दे सोनगरा हुआ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy