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________________ मुंहता नैणसोरी ख्यात [ २०३ तूठी ; तूं जांण सु मांग'।” तरै आसराव देवीरो रूप देखनै जांणियो, "इसड़ी बैर व्है तो भली ।" तरै देवी कह्यो-"तूं म्हारै बैर हुय घरे रहि।" तरै वाचा छळ आई । तरै कह्यो-"अतरी वात हूँ पहली कहू छू, कोई मोनूं जांणसी तरै हूँ परी जाईस" यूं कहिनै देवो घरे आई । तिणरै पेट, कहै छै च्यार बेटा हुवा' ७ मांगकराव । ७ मोकळ । ७ पाल्हण । ७ · · · हुवा । ८ तिणरो बेटो केलण हुवो ॥ ८ ॥ ६ तिणरे कीतू वडो रजपूत हुवो। तद जाळोर पंवार कुंतपाळ धणी हुतो । नै सिवाणे पिण पंवार वीरनारायण हुँतो । नै कुंतपाळरै प्रधान दहिया हुता । तिणरै भेद कीतू जाळोर लियो । सिवांणो ही लियो । १० समरसी रावळ हुवो। ११ अरिसीह समरसीरो, जाळोर धणी हुवो। १२ उदैसीह अरसीरो जाळोर पाट। तिण ऊपर संवत् १२६८ माह सुदि ५ जलालदी सुरतांण जाळोर ऊपर आयो हुतो सु भागो', तिण साखरो दूहो फूंदै कांचड़रो कह्यो'""सुंदर सर असुरह दळे, जळ पीयो वैणेह । उदै नरयंद काढ़ियो, तस नारी नयणेह ॥ १॥" १३ जसवीर उदयसीरो। १४ करमसी जसवीररो। . १५ रावळ चाचगदे करमसीरो । चाचगदे सूंधारै भाखरे देहुरो ___ I तेरे पर मैं प्रसन्न हुई, तेरी इच्छा हो सो मांग ले। 2 जाना, विचार किया। 3 ऐसी पत्नी हो तो ठीक । 4 तू मेरी पत्नी हो कर मेरे घरमें रह। 5 तव वचनबद्ध हो गई। 6 कोई मुझे पहचान लेगा तो मैं चली जाऊंगी। 7 कहा जाता है कि उसके चार बेटे हुए। 8 उसके भेद बता देनेसे कीतूने जालोर और सिवाना दोनों ले लिये । 9 जिस पर सं० १२६८के माघ शु० ५को सुलतान जलालुद्दीन जालोर पर चढ़ कर आ गया पर हार कर भाग गया। 10 फूंदे कांचड़का कहा हुआ उसकी साक्षीका यह दोहा है ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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