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मुंहता नैणसीरी ख्यात चावंडाजीरो करायो । संमत १३१२' । १६ सांवतसी रावळ चाचगदेरो। १६ चंद्ररावळ सांवतसी चाचगदेरो। २ राव कानड़दे सांवतसीरो, जाळोर धणी हुवो । दसमों
साळगरांम गोकळीनाथ कहांणो। संमत १३६८ जाळोररै गढ़रोहै अलोप हुवो। ३ कँवरांगुर वीरमदे, पातसाहतूं रावळ कानड़दे वांस दिन
३ वाज मुवो। २ मालदे मूंछाळो सांवतसोरो वेटो गढ़रो है । जाळोररै रावळ
कांनड़दे बीज राखण वास्तै काढ़ियो । पछै पातसाह रावळ कांनड़दे वीरमदेनै मारनै गढ़ लियो । पछै मालदे घणा विगाड़ किया । फोजां वांसै सिवाणे खांन लागो रह्यो । पछै देवी सैणी चारणी दिल्ली आई तरै मालदे ही देवी साथै दिल्ली आयो । पछै देवी सैणी विमर मांहै पैठी तठे मालदे ही विमर माहै साथै पैठो । प्रागै वहुळी जोगणी" बैठी हुती तिण आपरा गळारो कांठलो १ जड़ावरो मालदेवू दियो । पतर १ लोहीरो भर दियो' सु मालदे पियो नहीं । जांणियो लोही छै । नै ओ अमृत हुतो सु थोड़ो सो मुंहडै लगायो थो सु मूंछे लागो, तिणसू मूंछ वधी, तिणथी मूंछाळो मालदे कहांणो । पछै कानड़देजी हुकम दियो, तरै
1 रावल चाचगदेवने तूंचा पहाड़ पर सं० १३१२में चामुंडादेवीका मंदिर बनवाया । (मारवाड़ राज्यके जालोर परगनेमें जसवंतपुराके पहाड़को सुंधा पहाड़ कहा जाता है, जिस पर पहाड़ काट कर यह मंदिर बनवाया गया है)। 2 राव कान्हड़दे सं० १३६८में जालोर गढ़रोहेके समय अलोप हो गया। यह दशवां सालिग्राम-गोकुलनाथ प्रसिद्ध हुआ। (कानड़दे वड़ा वीर हुा । पं० पद्मनाभ कविने जालोर और सिवानेके इस युद्ध के संबंधौ ‘कान्हड़दे प्रबंध' नामक एक प्रसिद्ध काव्यकी रचना की है)। 3 रावल कान्हड़देके वाद कुंवरागुरु वीरमदे वादशाहते तीन दिन लड़ाई करके मर गया। 4 मालदे मूंछाळे को जालोरके गढ़ रोहे परसे कान्हड़देने अपना वंश कायम रखनेके लिये अन्यत्र भेज दिया। 5 फौजोंके पीछे । सिवानेका खान लगा रहा । 6 फिर देवी सैणीने गुफामें प्रवेश किया वहां मालदेव भी साथमें . घुस गया। 7 रक्तका पात्र १ भर कर दिया। 8 इससे 'मूंछाळा मालदे' कहा जाने लगा।