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________________ १९२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात रिण खेत पिसण' केहि राखिया कह्नि काय कवि पात्र कहि। अभिनमो क्रन दानेसवर, रायसिंघ विवनोम कहि ॥ ४ कुण चारण कुण चंड, कवण बंभण' बंभेसुर । कुण जोगी कुण जती, कवण दरवेस दिगंवर ।। कुण पंडित कृण पात्र, कवण खंखी परदेसी । जाचेवा जेतल नट्टनीय, भटनीय निवेसी ॥ . रिण हुवौ सीस दुहिला रहै,रुळियो नह चूकै रिणां । हिंदवै राव विवनै हुदै, मोटो छैहो मांगरणां ।। ५ क हिम मेर डोल है, क हिम जळहळ है सायर' । क हिम चंद लुक्कि है, क हिम छळहळ देवायर ।। क हिम वीस ब्रहमंड, गाढ़ छांडे हेकागळ'" । क हिम सपत पाताळ.चळी जय हूंत अगच्चळ'' ॥ खड़हरे इंद्र काळंतरै", पड़े रुद्र व्रहमा पड़े । रूपक' नाम रायसिंघरो, तोही जरा नह आमड़े ॥६ वित्त सु मारग खरचियो,चित्त लीग हर पाए। जिसो नेद वाचियो, तिसी परसिद्धी पाए । सुरापांन नहीं कियो, कदै परनार न रत्तो। सयल धरम साचनै, परम दएहि संप्रत्तो" ॥ अाखंतवद्द''तुंवर अधिक अपछर पारत्ती करै। सुर भुवण राव प्रवाडमल,जयजयकार उवच्चरै ॥ ७ ॥ इति सीरोहीरा धगियां देवड़ारी ख्यात संपूर्णम् ॥ लिखतं वीठू पनोसीह थळिरो ॥ वाचे जिण सिरदारसू जैश्रीरुघनाथजीरी वंचावसी । I शत्रु। 2 ब्राह्मण। 3 साधु । 4 हिन्दुस्थान । 5 (१) कभी, (२) यदि। 6 सुमेरु पर्वत । 7 सागर। 8 सूर्य, दिवाकर । 9 शक्ति । 10 एक वार । II पर्वत । I 2 समय । पा कर । 13 काव्य-कीति । 14 मिटना, नाश होना । I5 लीन । 16 पाँव । 17 प्राप्त हुया । 18 कहता है । 19 विरुद्ध । 20 अप्सराएं । 21 जोरावर, प्रवाड़े करने वाला वीर। .... 22 उच्चारण करते हैं। 23 सीहथलके वीठू पन्ना द्वारा लिखित। 24 जो महानुभाव । इसको पढ़ें उनको 'जयश्री रघुनाथजीकी' मालूम हो।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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