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________________ १६० ] महता नेणगीरी ग्यात जिकै इंदु फणइंद कंदतां लग निकास। जुब प्रवीण दरांण' पांण त्यां दूरि पियान ।। जिकै छा गज गत्त जत्र त्यां हुये अलगा। जिक काळ लंकाळ लुळे लुळ पाये लगा ।। पूरब पछिम उत्तर दक्षिण कीती रेगे खळमळ । अखैराज अरक पोहालियो हुय नरंद हालोहळ ॥ २२ बंध खांन आप वळ मांण मेजे मिलकांणो । धरा राज धर धूगा, लियो चांप लोईयांणो । डोडियाळकी वेल, बास गोखंभ वसावे । चांपै तीस चौवीस, मार धर सत्र' मनावं ॥ पतसाह सूर दसवार पिड़, जे ढंढोळ गो दळां । अखैराज साल इळ अंतरै, उरह निमंध एतळां ॥ २३ कोड प्रवाड़ा' कर, सरग' श्राख ई सांप्रतो" । रायसिंघ तिण पाट, अरक वेधै जगतो ।। किरण झाळ झळहळे, अंब अंबर" पोहासै । सपतदीप सारीख वदन उद्योत विकासै ।। नव मेक"छत्र छाया निजर,वरन अठारह विळकुळे । पह"सिंघ प्रतप्पै 'सिवपुरी,जोत विव"जिम जळहळ ।। २४ ।। काय' भोज कीकम्म'", काय रुद्रनाग अरज्जन । काय रांमण बळराज",काय जुजठळ"अरगंजन।। क्रनकाय' हरचंद क्रन्न कळजुग्ग" कहता । काय समर दाधीच काय जीवाहन जंता ॥ सुजसिंघ सही सुजसिंघ सत एह न पारख "पावरां"। काय वात न माने पर किणी,क्रग्ग"दीध जळतो करां।। २५ . I प्रतिज्ञा पालनके लिये प्राणोंको न्योछावर करने वाला वीर। 2 जोरावर । 3 मिटा दिये। 4 शत्रु। 5 पृथ्वी। 6 इतने। 7 युद्ध। 8 स्वर्ग। 9 कहता है । 10 प्रत्यक्ष। II आकाश। 12 एक। 13 स्वामी। 14 प्रतापवान् हो रहा है । 15 सूर्य। 16 क्या तो। 17 विक्रम । 18 रावण । 19 राजा बलि । 20 युधिष्ठिर। 21 राजा कर्ण। 22 हरिश्चन्द्र । 23 कलियुग। 24 समानता। 25 दूसरोंमें । . 26 (१) खड़ ग, (२) हाथ । .
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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