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________________ १८८] मुंहता नैणसीरी ख्यात तेजसीह अरबद्द सेस पीतियै वधारै ।। पग प्रांण धरा गिर पालटै घणूं विरद आव्रत घणा । सुरथांन गयां राखै सको तपै तुंग वीजड़ तणा ॥ १३ तेजसीह पंमार भैचूक' प्रावटै । दसमो ग्राह लूंभेण पुत्रते सलख प्रगट्टै॥ सलख सूर संग्राम सलख सुरतांणां सहल्लै । सलखतणौ रिणमाल झूझ भर दूणो झल्लै ।। सरणिय वसै रिडमल सुहड़ खंडांउंडां खड़खड़े । चहुवांण जिकण ऊपर वडै घण नरिंद धायै घड़े ।। १४ अरवदही रिणमाल अनैवी' कळका चोळे । सोळंकियां सहाय बोल हुय भारी बोले ।। करै कटक अरजक्क' निवह देवड़ो निहट्टै।। वोडो विरद पगार आव वीसर आहट्टै।। पळ खंड चंड भुवडंड पिड़ खित'कारण खळ खुट्टिया' । चापड़े वीस चवदह चडै आरोपण आवट्टिया ।। १५ दळ बोड़ां देवड़ा सहित विकळत संघारै । रहै हेक रजपूत तेण रिणमल्लह मारै ।। तेण पाट तुडतांण वधै सोभ्रम्म वडाई। सोभ्रम्मरै सहसमल सूररै ऋन्न सवाई ॥ चहुवांण देस च्यारह चरै पग हि न हल्लै पाधरै'। अरवद्द राव बळ आपरै, जां प्रारंभ तां करै ।। १६ कुंभक्रन्न अरबद्द, लियो सरणुप्रो सहेतो। सहसमल्ल सुरतांण, जाय श्रगवास'' पहूं तो" ।। कर ऊपर कुतवदी, इतो क्यूं वेगो आवै । गयो रांण ो घाट, घाट परगह पाड़ावै !! वीटेव दुरंग थांरण वहै, पनरै ती पालट्टिया। I सबको। 2 उसी समय, एकदम। 3 शल्य रूप लगता है। 4 जिसके । 5 अपने मतसे चलने वाला । 6 शत्रु । 7 पृथ्वी 1 8 शत्रु । 9 नाश किया। 10 सीधे । II स्वर्गवास । 12 पहुँचा।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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