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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात कौमारी | कालिका जग कृतो कंधरूढ़ा कमळा चपळा कळा पळा प्रमहंस पियारी ॥ देवांण विद्या दत्तावरी देवी धनदाता वरी । चहुवांण वंस रूपक' चवां सारसत्त भुवनेश्वरी ॥ १ वंस चहुवांण वखांण प्रांण सुरतांणां ऊपर | अनळकुंड उतपत्त मुद्राकी चंद महेसुर ॥ मार मार वित्थार वार ऊठियो खुरासांणां खळभळ निहंग सवाळख सिंध सागर सतर जिणे त्यै वंस समो नह को तियग को संग्रांम न समवड़ी " ॥ २ विकास । सावच्चा नासै ॥ खंड जीतां चड़ी । जेण' वंस जिंदराव जेण गोगो जगमग्गो । सोमेसर जग्गो || 10 जेण वंस जैतराव जेण तेण' वंस प्रथिमल्ल साल गढ़ चौरासी ग्रहे साभि बंधे हूवो सत्रांणां" । सुरतांणां ॥ कैवास सूर सारखि क्रियंत जास मोहल्ल न पांमता । चौतीस लाख चतुरंग दळ हुयां प्रायससह " हालता " ।। ३ 12 3 तेण डंडे पंडुवां खांण त्रंब में ऊलाळं । माळवो मलवटै पैज दक्षिणहू पाळ ॥ गूजरवै पोह" ग्रहे सिंध समूहो नीहट्टै । देतो परदक्षणा प्राव दिल्ली रहट्टे ॥ अन अन्न देस धर गिर प्रवर संकोड़े संसार सहि । चहुवांण पिथमसूं चापड़े गज्जणवे गज्जनवै सुग्रहै दूजै गयंद तुरंग तीजै साह महंत लेय 8 I वर्णन, काव्य । 2 कहता हूँ । 5 समान । 6 समान । 7 जिस । II श्राज्ञा । 12 चलते । 13 प्रतिज्ञा । वाला । 16 स्त्रियां । 17 निद्रावश, नींदमें मस्त । 3 दुहाई, घोषणा, शासन । 4 श्रग्निकुण्ड । उस 1 9 शल्यरूप | 10 शत्रुनों के लिए । 14 गुजरातके स्वामियोंको । IS नाश करने लीध गोरियां " 5 [ १८५ सुरतांण गहि ॥ ४ भंडार पहल्ली । नींद गहल्ली " ॥ नव लाख वसावै ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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