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________________ १८६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात सु तेजसी पांचे-दसे दिन मेरानूं या वात विगर पूछियां नहीं रहे । सु मेरो मुंह. तो क्यूं फेर कहै नहीं', पिण मनमांहे आवटै । वळ घणो । ऊणो जाय' । डील दूबळो हूतो जाय । तिण समै मेरारै काको एक प्रांधो सु मिलणनूं आयो छै । तिणरै मेरो पगां लागो । तरै उण अांधै काकै मेरारै मुंहडे, छाती, हाथां हाथ फेरियो। तरै उण डील दूवळो जांणियो । तर अांधै काकै मेरा कह्यो-"मेरा ! न्याय पंवारांसू आवू गयो, वांस तो सारीखा भींव हुवा ?' तरै मेरे कह्यो-"काका ! रजपूत तो रूड़ो छू, पिण मोनूं सासतो दगध घणो छ, तिणसूं हूं हेठो-हेठो जाऊं छू।" तरै काकै पूछियो-तो किसो दगध छै ?" तरै मेरै कह्यो-"हू जरैही तेजसी रावळ कने जाऊं तरै मोनें कहै-"मेरा! आबू थारो किना म्हारो ?" तरै हूँ मुंहडै तो कहू-"बाबू राजरो" पिण हूँ मन माहे घणो प्रावटूं । तरै काकै कह्यो-"फिट मेरा ! जायै जीवन मरणो छै । हमरकै भेळा हुय जास्यां । देखां, गोविंद कासं करै । पिण एक भलो देवड़ारो सिरदार कनै मोनूं बैसाणे नै तोनं तेजसी कहै-“मेरा ! अावू कुणरो' ?" तरै तूं कहै' - "पावू म्हारो, म्हारा वापरो, म्हारा दादारो । तूं ऊपरवाड़ारो सांड पैठो।" कवित्त छप्पय सीरोहीरा टीकायतारा परयावलीरो आसियो मालो कहै" कवित्त . आदि अनादि असंभव आप मुद्रा ऊपाए । ओंकार अप्पार पार प्रमही नहिं पाए । I सो मेरा उसके मुंह पर तो कुछ कहता नहीं। 2 किन्तु मनमें घुटता है। 3 वहृत जलता है । 4 कम होता जा रहा है। 5 मेरा ! पंवारोंसे प्रावू गया यह न्यायकी बात है क्योंकि पीछे तो तेरे जैसे भीम (भीम जैसा पराक्रमी) ही तो रहे हैं ? 6 अच्छा। 7 किन्तु मुझको निरन्तर जलन बहुत है जिससे मैं दुर्बल होता जा रहा हूँ। 8 किम्वा । 9 धिक्कार मेरा ! जन्मे हुए जीवको मरना है। 10 अवकी साथ हो कर जायेंगे। II देखें भगवान गोविन्द क्या करते हैं। 12 विठावें। 13 अाबू किसका ? 14 तव । 15 न उलटे मागंका सांड पुन गया। 16 परयावली गांवके चारण आसिया मालाके कहे हुये गिरोहीके टीलायतोंके कवित्त छप्पय ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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