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________________ १५६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात रावरै चाकर मार दी' । देवड़े प्रथीराज दीठो, रातरा अ→ रहां तो मारिया जावां । तद इणांरै भला-भला रजपूत हुता तिकै प्रागै हुवा। केई पाछै हुवा, के दो बाजुवां हुवा । गरट करनै हुड़ी कीवी । इणांनूं ले नीसरिया । वासै साथ रावरो लूवियो । तिणसूं पाछा वळ-वळ रजपूते वेढ़ की। काम प्रावता गया । घणों साथ मरतां सिरदार कुसळे पाया । डेरै आय घोड़े चढ़ नीसरिया । कितराहेक साथसू पालड़ी आया । वांस सीसोदियो परवतसिंघ, देवड़ो रांमो, चीवो दूदो, करमसी, साह तेजपाळ भेळा हुय राव अक्षराजनूं संमत १६७५ टीको दियो । पछै पाखती' चीतोड़रै धणिये, ईडर राव कल्याणमल वडो ठाकुर थो तिर्ण वात सुणी । सिगळां राव अखैराजरो ऊपर राखियो' । प्रथीराजनै गांव गयां पछै परबतसिंघ देव. रांमै, चीवै दूदै, करमसी, साह तेजपाळ घणो बळ वांधियो" । प्रथीराजनूं ठेल देस मांहेथी काढ़ियो । प्रथीराज देवळारै परणियो हुतो, सु देवळां धारै, मांनै इणनूं चेखळा-भाखर मांहे बांकी ठोड़ थी तिका दीनी" । प्रथीराज माणसां सूधो उठे जाय रह्यो । वेटो चांदो । प्रांवाव दिसा जाय रह्यो । धरतीनें दौड़-धाव घणी ही कीवी। कितराहेक गांव विभोगा किया' । चांदै दांण सीरोही लीजै तिणसूं आधो लियो" । पिण अ हरांमखोर था सु दिन-दिन गळता गया। दौड़णरी तकसीर काई न की' । पछै रायसिंघ भतीज गांव १ मारण ____ I रावके अनुचरोंने चारों ओरसे मार मारी। 2 देखा। 3 रातको यहां रहें तो ... मारे जाय। 4 तव इनके जो अच्छे-अच्छे राजपूत पासमें थे वे आगे हुए। -5 कई पीछे हुए और कई दोनों बाजू हुए। 6 अपना-अपना समूह बना करके जल्दी-जल्दी चले। 7 इनको ले निकले। 8 रावका साथ पीछे लगा। 9 राजपूतोंने जिससे पीछे लौट-लौट कर .. लड़ाई की। 10 पास। II सवने राव अक्षराजकी सहायता की। 12 वहुत जोर पकड़ . . . लिया। 13 पृथ्वीराजको धक्के मारकर देशमें से निकाल दिया। 14 पृथ्वीराज देवलोंके यहां व्याहा था सो देवल धारे और मानेने चेखला पहाड़में जो वाकी जगह थी वह उनको रहनेके लिये दी। 15 पृथ्वीराज अपने मनुष्यों सहित वहां जाकर रहा। 16 वेटा चांदा यांवावकी ओर जाकर रहा। 17 धरतीके लिये दौड़-धूप बहुत ही की। 18 कितनेही गांवोंको करप्राप्त नहीं हो सकें वैसा बना दिया। 19 सिरोहीमें जितना कर लिया जाता था, चांदाने उससे आधा लिया । 20 किन्तु ये हरामखोर थे इसलिए. दिन-दिन निर्वश होते गये। . . . 21 दोड़नेको कोई तजवीज नहीं की।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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