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मुंहता नैणसीरी ख्यात समरावत, डूंगरोत सारा' हुवा। रावरी भीड़ देवड़ो प्रथीराज सूजावत हुवो । वेढ़ हुई । राव राजसिंघ वेढ़ जीती । सूरै वेढ़ हारी।
तठा पछै कितरेक दिनै राव राजसिंघ नै देवड़े प्रथीराज सूजावतसूं अणवणत हुई । प्रथीराज ग्रास-वेध विजै वाळो मांडियो । प्रथीराजरा बेटा-भतीजा आग खाय ऊठिया' । इणरै डीलांरी निपट जोड़ । रजपूत निपट भला उण कांठारा वास राखिया' । एक वार राव राजसिंघ नै देवड़ा प्रथीराजनूं राणे करन समझावरण उदैपुर तेड़िया । पछै झै उटै गया । रांणे कहाव-कथीना' किया सु देवड़ो प्रथीराज, रांम, रायसिंघ, नाहरखांन, चांदो-एकण भांतरा आदमी" । रांणातूं बुराई करां", इसड़ी प्रांगवण मन मांहे धरै'। सु रांणारा आदमी वीच फिरिया" । तिणां रांणानं वात समझाई। कह्यो-"इण परधानगी मांहे सवाद को नहीं" ।" तरै रांणा ही गई कीवी" । इणांनूं सीख दीवी' । राव नै प्रथीराज पाछा सीरोही आया । माहोमाह यूं हीज वहै छै । देवड़ो प्रथीराज जोरावर थको वहै छै । राव राजसिंघ देवड़ो भैरवदास समरावतनूं डूंगरोत, सहल सो पटो दे इणरै हीज प्रांटै राखियो हुतो'। सु राव राजसिंघ ... महादेव गया हुता । देवड़ो भैरव समरावत वासै रह्यो हुतो । बै सासता घात देखता हुता । पछै देव. प्रथीराज बेटां भतीजांनूं समझाय राखिया हुता । इणां वांसे रेहनै भैरवनूं मारियो । राव
I सव। 2 कितनेक । 3. अनवन । 4 जिस प्रकारकी बगावत विजयने की थी,उसी प्रकारकी बगावत पृथ्वीराजने करनी प्रारंभ की। 5 पृथ्वीराजके वेटे-भतीजे क्रोध से तिलमिला उठे। 6 इसके कुटुंव वालोंके बड़े अच्छे जोड़े। 7 उन्होंने उस ओरकी वस्तीकी रक्षा की। 8 समझानेके लिये। 9 बुलाये। 10 कहना-सुनना। II एक प्रकारकी प्रकृति. वाले मनुष्य ; खरे मनुष्य। 12 रानासे विगाड़ करें।. 13 ऐसी आंट मनमें रखते हैं। 14 अतः रानाके अादमी बीच-बचाव करते रहे। 15 जिन्होंने रानाको वास्तविकतासे अवगत किया। 16 इस सन्धि-प्रयासकी प्रधानता करनेमें कोई फल नहीं है। 17 तव रानाने भी वात छोड़ दी। 18 इनको रवाना किया। 19 परस्पर यों ही चलता है। 20 देवड़ा पृथ्वीराज जोरावर (सिरजोर) होकर चल रहा है। 21 थोडासा पट्टा देकर इसीलिये इसे रखा था। 22 पीछे। 23 ये निरंतर घात ताक रहे थे। ..