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________________ ण . १५० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात सुरतांण मोर्ने प्राय मिळियो । आधी सीरोही देणी कवूल की, तरै म्हे रावरो ऊपर कियो । विजै हरराजोतनं परो काढ़ियो, नै असवार ५०० सूं म्हैं, म्हारो लोक आधो मुलक सीरोहीरो पातसाही खालसै कियो छै, ततै थांणो राखियो छै। हजरतरै दाय आवै जिण जागीरदारनं दीजै, भावै करोड़ी भेजीजै । राव हुकमी-चाकर छै ।" ___ तिण समै दीवांण-बगसी सीरोहीरा अाधरी तजवीज करै छै', सु सीसोदियो जगमाल, उदैसिंघ रांणारो बेटो दरगाह गयो छै । सु प्रो राव मानसिंघरी वेटी परणियो हुतो, सु उठारो भोमियो छै । इण मुनसबमें सीरोहीरो अाध मांगियो । दीवांण-बगसीये पातसाह अकबरतूं मालम कीवी' । तरै पातसाहजी कह्यो-"रांणारो बेटो छै, लायक छै, दो । तरै तालिको लिख दियो । जगमाल तालीको ले आयो । तरै राव सांम्हो आय मिळियो । विजो देवड़ो पिण दरगाह गयो हुतो सु विजानूं किणही सीरोही दी नहीं, तरै विजो पिण जगमाल साथै आयो । धरती तो राव सुरतांण आधी जगमालनूं दी, नै पाटराघरां' मांहे राव सुरतांण रहै छ, नै बीजा घरां" माहे सीसोदिया जगमाल प्राय रह्यो छै । सु राव मानसिंघरी बेटी जगमालरी बैर तिका कहै- "म्हारै वापरा घर, तिकां मांहे म्हां थकां दूजा क्यूं रहै'" ?" घरां-पाटरी दिसा अणवणत हीज छै । तिण समै राव सुरतांण एकण दिन कठीके'" गयो हुतो, वांस' जगमाल, विजो दाव' करनै घरां ऊपर गया । सोळंकी सांगो, आसियो, दूदो, खंगार, .... तव रावकी सहायता की। 2 और ५०० सवारों के साथ मैंने और मेरे मनुप्योंने आधे सिरोही देशको वादशाही खालसेमें कर लिया है। 3 हजरतकी इच्छा हो उस जागीरदारको देदें और चाहे अपना करोड़ी भेजदें (करोड़ी = कर उगाहनेवाला अध्यक्ष) । 4 राव आपका आज्ञाकारी सेवक है। 5 उस समय दीवान और वक्सी सिरोहीके आधे भागको बाँटनेकी तजवीज कर रहे हैं। 6 वादशाही दरवारमें। 7 यह राव मानसिंहकी वेटीको व्याहा था अतः वह वहांका जानकार है। 8 इसने मनसबके साथ सिरोहीका - आधा भाग मांगा। 9 दीवान और वक्सी लोगोंने बादशाह अकवरसे निवेदन किया । 10 तव अधिकार-पत्र लिख दिया । I राजाके रहनेके महल। 12 दूसरे घरोमें। 13 पत्नी। 14 मेरे वापके घर, जिनमें हमारे होते हुए दूसरा कोई क्यों रहे ? 15 पट्टघरों (मुख्य प्रासाद) के संबंधमें अनबन चल ही रही है। 16 कहीं। 17 पीछेसे। 18 अवसर देख करके; ताक लगा कर । ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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