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मुंहता नैणसीरी ख्यात
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राव कनै आय रहण लागा । विजे नै राव माथा पड़िया लीजै छै । तिण समै वीज़ारा भाई २ लूणी, मांनो वडा रजपूत था सु रावथी जुदा विजाथी फाटने प्राय मिळिया । रावरो वेळो दिन-दिन भारी
तो गयो । एक वार सीरोही मांहेसूं देवड़ा विजानूं परो काढ़ियो । तर विजो आप वसीर गांव गयो छे' । तिण टांग महाराजा रायसिंघजी बीकानेररा सोरठनूं जावता सु सीरोही निजीक आया' । तरै राव सुरतांण सांमों जाय मिळियो । रावरो राजा घणो प्रदर कियो' । पछे देवड़ो विजोही घणो साथ लेने महाराज रायसिंघजीसूं प्राय मिळियो । घणोही लालच दिखायो, पिण राजा विजानूं कबूल न कियो । राव सुरतांणसूं वात कीवी । आधी धरती पातसाहरै कधी | आधी धरती रावरी कीधी, नै विजो काढ़णरी कबूल राखी | पछे महाराज रायसिंघ विजानं परो काढ़ियो । प्राधी धरती पातसाहरै कीवी" । तिण मांहे राव मदनो पातावत असवार ५०० दे वाव कन्है राखियो नै आप सोरठ गया" । तिको प्राधो वंट पातसाहरै कियो, तरै राजा रायसिंघ दरगाहनूं लिखियो कियो - "जु राव सुरतांण सीरोहीरो धणी, तिणनं इण भांत ग्रासिया विजै दबायो हुतो सु राव
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I' माथापड़िया लीजै छै' मुहावरा है - यहां पूरे वाक्यका अर्थ है -- विजय और राव सुरतान के परस्पर शत्रुता यहां तक बढ़ गई कि एक-दूसरे का सिर काट लेने की ताक में लगे रहते हैं । 2 उस समय विजयके दो भाई लूगा और माना, जो बड़े वीर राजपूत थे और पहले रावसे जुदा थे सो विजयके विरुद्ध होकर रावसे ग्राकर मिल गये । 3 'चेको भारी होणो ' मुहावरा है । शब्दार्थ है - ताकड़ीका पलड़ा भारी होना लाक्षणिक अर्थ है - पक्षका समर्थ होना । वाक्यार्थ रावका पक्ष दिनप्रतिदिन समर्थ बनता गया । निकाल दिया | 5 तब विजय अपनी जागीरीके गांवमें चला गया है । 6 उस समय । हुए सिरोही के नजदीक आये । 8 'रावरो राजा घणो आदर कियो ।' यह वाक्य अशुद्ध लिखा गया प्रतीत होता है । होना चाहिये था - 'राजा राव घणो प्रादर कियो ।' आदरभजन अतिथि होता है न कि श्रातिथ्यकर्त्ता । 9 किन्तु महाराजा रायसिंहने विजयको सिरोही का
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7 सौराष्ट्रको जाते
राव बनाया जाना स्वीकार नहीं किया । 10 और विजयको देशसे निकाल देनेकी शर्त : मान्य रखी । II सिरोही राज्यकी आधी भूमि बादशाह के अधीन रखनेका निश्चय किया । 12 उसमें पाताके पुत्र राठोड़ मदनको ५०० सवार देकर बावके पास रखा श्रीर ( रायसिंह ) स्वयं सौराष्ट्रको चले गये । वाव, एक गांव है जो मारवाड़ और सिरोहीकी सीमानों के निकट उत्तर गुजरात में है । 13 ग्रास — एक प्रकारकी जागीरी है जो वॅटमें गुजारेके लिये अथवा भोजन ग्रादिके खर्चे के लिये दी जाती है और उसका भोगने वाला ग्रासिया कहलाता है ।