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________________ सीसोदियांरी ख्यात - वार्ता दूसरी रावळ बाप हारीत -रिखरी सेवा करी। मेवाड़रो राज लीयो । तिणरी साखरा' कवित, रावळ बापारा आदि मूळ उतपति, ब्रह्म पिण खत्री जांणां, आनंदपुर सिणगार, नयर आहोर वखांणां । दळ समूह राव रांण, मिळे मंडळीक महाभड़, मिळं सबै भूपती, गरू गहलोत नरेसर । एकल्ल मल्ल धू ज्युँ अचळ, कहै राज बाप कीयौ, एकलिंगदेव आहूठमां. राजपाट इण पर दीयो ॥ १ ॥ छपन कोड सोव्रन्न, रिखी हारीत समप्पै, संदेही श्रग गयौ, राय-रायां उथप्प 1 अंतरीख ले अमृत, सिद्ध पिण आघो कीन्हो, भयो हाथ दस देह, सस्त्र वज्र मई सु दीन्हौ । आवध्य अंग लग्गे नहीं, आदि देव इम वर दीयौ, गुहादित तणै भैरव भगै, मेदपाट इण पर लीयो ॥ २ ॥ ७ हर हारीत पसाय, सात-वीसां वर तरणी, मंगळवार अनेक, चैन वद पंचम परणी । 1 की । 2 साक्षी रूप कवित्तका अर्थ वापा रावलके वंशकी उत्पत्तिका मूल कारण ब्राह्मण हैं, जो अब क्षत्री जाने जाते हैं । वे आनंदपुरके शृंगार हैं । वह नगर आहोर नामसे प्रसिद्ध है । कई बड़े २ राजा, राना, मंडलीक और महाभट भूपति मिले, जिनमें गहलोत नरेश्वर रावल बापा सबका गुरू माना जाता है । हेकल मल्ल रावल बापाको ध्रुवके समान अचल राज्य करने वाला कहा जाता है । एकलिंग महादेवने प्रसन्न होकर रावल नापाको इस प्रकार किसीके द्वारा नहीं जीता जाने वाला राज्यपाट दिया ॥ १ ॥ हारीत ऋषिने बापाको छप्पन करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ दीं। कई राजाओंको उथल कर वह सदेह स्वर्गको गया । सिद्ध हारीत ऋषिने उसे अंतरिक्षमें उठाकर अमृत द्वारा उसका सन्मान किया, जिससे उसकी देह दस हाथ हो गई और उसे वज्रके समान शस्त्र प्रदान किया । आदि देव महादेव के द्वारा अमृत दिये जानेके कारण बापाके शरीरमें कोई शस्त्र नहीं लग सकता था । कवि भैरव कहता है कि गुहादित्य के पुत्र बापाको इस प्रकार मेवाड़का राज्य दिया ॥ २ ॥ महादेव और हारीत ऋषिकी कृपासे रावल बापाने चैत्र कृ० ५ मंगलवारको एक साथ १४० युवतियोंसे विवाह किया ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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