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मुंहता नैणसीरी ख्यात चित्रकोट कैलास, आप वस परगह कीधौ,
मोरी दळ मारेव, राज रायां गुर लीधौ । वारह लख बोहतर सहस, हय गय दळ पैदल वर्ण, नित मूडो मीठो ऊपड़े, मुंजाई वापा तणे ॥३॥
खडग धार पाहार, नित भयसा दुय भंजै, कर आहार छ वार, ताम भोजन मन रंजै । पट्टोळो पैंतीस हाय, पेहरण पहरीजै,
पिछोड़ो सोळे हाथ, तेण तन नहीं ढकीजै । पय तोडर तोल पचास मण, खड़ग वतीसां मण तणौ, सुण वापा सेन सम्म चलै, जिण भय कांपै गज्जणी ।। ४ ।।
जालंधर कसमीर, सिंध सोरठ खुरसांणी, ओड़ीसा कनवज्ज, नगरथट्टा मुलतांणी । कुंकण नै केदार, दीप सिंघळ मालेरी,
द्रावड़ सावड़ देस, आंण तिलंगांणह फेरी । उतर दिखण पूरव पछिम, कोई पांण न दख्खवै, सांवत एक एकाणवै, वापा समो न चक्कवै ॥५॥ अथ सीसोदियारा भेद -
सीसोदो गांव उदैपुरतूं तठ घणा दिन रह्या तिण वास्ते सीसोदिया गांव लारै कहावै छै । नागदहा कहावै छ सु घणा दिन नागदहै गांव वसीया तिण कारण ।
एक वात यूं सुणी छै - आगै अ बांभण हुता। राजा परीखतरै वैर जनमेजै नाग होमाया, तिके इणां' होमिया । नागदहो गाँव एकलिंगझू कोस १ छै । सीसोदीयांरो विरद 'आहूठमा-नरेस' कहावै छै । तिणरो भेद आढे महेस संमत १७०६ में कह्यो । एक तो आहूठ हाथ - सारा आदमी - तिण सारांरो धणी । एक आहठ कोड़
1 इन्होंने।
राजाओंके गुरू रावल बापाने मौर्य वंशके समूहको मार उनका राज्य अपने अधीनमें किया और कैलाशके समान चित्रकूट (चित्तोड़) पर्वत पर परिग्रह सहित अपना वास - स्थान बनाया। वापाने हायो, घोड़े और पैदल, सब मिलाकर बारह लाख बहत्तर हजारको अपनी सेना बनाई। बापाको रसोईमें नित्य एक मूड़ा परिमाण तो नमक ही उठ जाता था ॥३॥