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________________ मुंहता नैणसीरी म्यात वार सत्त पंचास, गड़े गैमर गळ गंजै, लख्ख एक तोखार, ठिठल अरीयण घड़ भंज। पाताल सेस पडिहाइयो, दुर देस राव डंडवै, वांकड़ो राव वैरड़ बसुह, मुणस हेक मेवाड़वै ।। ४ ।। वात रांणा राहपरी । (३२) रांणो राहप . ( ) , नरपति (३३) , दिनकर (३४), जसक (३५) , नागपाळ दूहो, रांणा नागपाळरो - नागपाळ रायाँ-सु गर, जिण भंज खरसांण । चक्रवत सोह चेला किया, हेम सेत लग आंण ।।१।। (३६) रांणो पुनपाळ (४५) रांणो मोकल (३७) , (पेथड़) प्रथम (४६) , कुंभो भुणंगसी रायमल (३९) , जैतसी (४८) सांगो गिड़ मंडलीक लखमसी (४९) उदयसिंघ अरसी (५०) प्रताप हमीर अमरसिंघ खेतो करन (४४) , जगतसिंघ (५४) रांणो राजसिंघ ॥ इति ।। 1 नरपतिका नाम दूसरी ख्यातोंमें नहीं है । मेवाड़के इतिहासमें और हमारी इस प्रतिमें है। . 2 हमारी प्रतिमें 'राणो प्रथम' लिखा है किन्तु कइयोंमें 'पेथड' और पथोप । 3 भीमसिंह अथवा भुवनसिंह । 4 सिंहोंके बीचमें 'सूअर के समान निर्भय । लक्ष्मणसिंह, रावल रत्नसिंहकी सहायतामें अलाउद्दीन खिलजीसे लड़ा और रत्नसिंहके काम आ जाने पर स्वयं चित्तोड़के राज्यके लिये अपने कई बेटों सहित वीरगतिको प्राप्त हुआ। ___ वरड़ने ५७ वार कई सजे हुए और पाखर किये हुए हाथियों और एक लाख घोड़ोंको शत्रुओं पर डालकर उनका नाश किया । इसकी सेनाके भारसे पातालमें शेष नाग घबराने लगा। वैरड़ने दूर-दूरके देशों के राजाओंको दंड दिया । मनुष्योंमें मेवाड़की भूमि पर एक वरड़ ही ऐसा रणबंका राजा उत्पन्न हुआ। हे का अर्थ - राजाओंमें गुरू रूप नागपालने कई वादशाहोंको हराया और समस्त चक्रवर्ती राजाओंको अपना शिष्य बनाया एवं हिमालयसे सेतुबंध तक अपनी आज्ञा मनाई। (४७) , (४१) , लाखो
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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