SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहता नैणसीरी ख्यात १०३ करै छै । पर्छ करमेतीरै बेटा २ हवा-विक्रमादित, उदैसिंघ । तिणांसू रांणो घणी मया करै छ । सु एक दिन दीवांणसू करमेती .: अरज कीवी-"दीवांण घणा दिन सलामत रहै, पिण विक्रमादित उसिंघ नाह्वा' छ। रावळे टीकाइत साहवीरो धणी रतनसी छ । राज बैठां कांइक इणांरो सूल' करो तो भलो छ ।” तरै रांग पूछियो-“थे किण भांत अरज करो छो।" तरै करमेती हाडी कह्यो"इणांनू रिणथंभोर सारीखी ठोड़ रतनसी नै पूछनै दीजै नै हाडा सूरजमल सारीखा रजपूतनू बांह झलाईज । प्रा वात दीवांण ही कबूल करी। सवारै दीवांण जुड़ियो, तरै कवर रतनसीनू रांग सांगै .. कह्यो-"विक्रमादित उदैसिंघ थारा लोहड़ा" भाइ छ । तिणांनू एक पग-ठोड़ दीनी चाहीजै।" सु रांणो वडो दूठ ठाकुर छो, सु रतनसी . क्युं फेर कही सक्यो नहीं। कह्यो-“रावळे विचार आवै सु ठोड़ दोजै ।" तरै रांण रतनसीनू कह्मो-"रिणथंभोर इणांनू दो।" तरै रतनसी कह्यो-"भला ।" तरै रांग विक्रमादित उदैसिंघनू कह्यो "म्हे थांनू रिणथंभोर दियो। थे ऊठ तसलीम करो' ।" तरै इणे - तसलीम करी । तरै हाडो सूरजमल दरबार बैठो थो । तरै रांग सांगै - सूरजमलनू कह्यो-"म्हे विक्रमादित उदैसिंघनू रिणथंभोर दां छां12 ....... सु थे इणांरी बांह झालो । झै म्हें थांहरै खोळे घातां छां ।' तरै ....... सूरजमल कह्यो-“म्हारै. इण वातसू काम कोई नहीं । हूं चीतोड़ टीके बैसै जिणरो चाकर छू । म्हारै इणसू कोई तलो" नहीं ।” तरै रांग . सांगै वळे घणो हठ कर कह्यो-" डावड़ा" नाह्ना छै । थांहरा भाणेज ... छै। बूदीसू रिणथंभोर निजीक छै। तू भलो रजपूत छै । तद . इणारी बांह तो झलावां छां ।” सूरजमल अरज कीवी-"दीवांण फरमावो सो तो सिर-माथा ऊपर । म्हे हुकमरा चाकर छां" । पिण .. दीवांणनूं सौ वरस पोहचै! तरै म्हांनूं रतनसी मारणवू तयार हुदै, 1 राना करमेतीके ऊपर बड़ी कृपा रखता है। 2 छोटे हैं। 3 आपके बैठे इनका भी कुछ प्रबंध करदें तो भली बात है। 4 सुपुर्द करदें। 5 सवेरे दरबार जुड़ा। 6 छोटे । 7 रहनेका स्थान। 8 जवरदस्त । 9 कुछ भी। 10 इनको। 11 प्रणाम करो। 12 देते हैं। - 13 तुमारी गोदीमें रखते हैं। 14 मतलब । 15 बच्चे । 16 शिरोधार्य। 17 हमतों आज्ञाका पालन करनेवाले सेवक हैं। 18 सौ वरस पोहँचे मरजाना।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy