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________________ मुहता नैणसीरी ख्यात एक वात यूं सुणी-- __ हाडो देवो बांगारो, बूंदी वेखरच थको आय भैंसरोडथी रह्यो हुतो' । कनै आपरी वसी हुती । नै देव राणा अरसी लखमसिनोतनूं बेटी दीवी थी । सु रांणो अरसी अठै जान कर वडी फोज ले परणीजण आयो । सु परणियां पछै रांण अरसी देवानूं पूछियो–'थांरी कानूं हकीकत ?" पूछी तरै देवै कही । तरे रांग कह्यो-'थे अठै काहिणनूं रहो ?' उरा श्रावो । तरै देवै कह्यो-'मांहरी एक अरज छै, एकत मालम करतूं ।' तद राणै एकंत पूछियो। तरै देवै कह्यो-'पा भली ..... धरती मेणां हे?' छै नै मैणा निवळा सा छै । जिकै छै सु आठ पोहर छकिया दारू मतवाळा थका रहै छ, सु दीवांण साथरी मदत करो... तो मैणा मारने आ धरती लू नै दीवांणरी चाकरी करूं । तरै देव मांगियो सु देवानूं रांग डेरो उठे (सू) हीज दियो । देवो फोज ले, बूदी मैणां ऊपर रात थकी आयो । नीसरणरा घाट, नास-भाजरा हुता सु भूमिया था सु सोह रोकनै मैणा सारा कूट-मारिया । वीजा जठे हुता सु सोह नास गया । देवै आपरी आण फेरी । मैणा मारनै रांणारी हजूर आयो । रांणो बोहत राजी हुवो । देवानूं कह्यो-'वळे कहो सु करां । तरै देवै कही-दीवांणरा ऊपरथी सारी वात भली हुई। मास ४ असवार सौपांच मदत पाऊं । तरै रांग असवार ५०० मदत देनै आप चीतोड़ चढ़ियो। पछै देवै भोमिया" था सु सारा कूट मारिया। वीजा धरती मांहे था सु सारा नास गया । पछै देवै आपरा भाईबंध तेड़ नै! ठोड-ठोड वसी राखी । आपरी जमीयत राखी। 1 देवाके पास पैसा नहीं था अत: बूदीसे भैंसरोड आकर रहगया था । 2 कामदार प्रादि वे कर-मुक्त नौकर-चाकर जिन्हें उस जागीरदारका 'चोटी-बढ़िया' और 'वसीरा लोक' भी कहते हैं 1 3 वरात बनाकर। 4 तुह्मारी क्या स्थिति है ? 5 तुम यहां काहे को रहते हो? 6 (हमारे यहां) पाजावो। 7 अधीन। 8 राना। 9 सेना। 10 जितने मनुष्योंकी सहायता देवाने मांगी उतने मनुप्य रानाने अपने निवासेसे ही उसे दे दिये। 11 रात रहते मैंनों पर चढ़कर बंदी आगया। 12 द्वार. मार्ग। 13 देवेने अपने शासनकी आजा प्रवर्त्त कर दी। . 14 मैंनोको मारकर रानाके दरवारमें पाया । 15 और कोई काम हो तो कहो सो वह . . भी कर दिया जाय। 16 रानाकी सहायतासे सब बात ठीक हुई। 17 छोटे जागीरदार। 18 बुलाकर। 19 स्थान-स्थान पर कर-मुक्त मंत्री, नौकर-चाकर आदि नियुक्त कर दिये। ..... 20 अष्ट्र और प्रवारोही ।
SR No.010609
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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