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दुर्गतियो मे धकेलने वाला है।
रौद्रध्यान के लक्षण __जिस से वस्तु के यथार्थ रूप का ज्ञान हो, वह लक्षण कहा जाता है। लक्षणो से जहा वाह्य पदार्थों का ज्ञान होता है वहा उनके प्रातरिक भावो की जानकारी भी प्राप्त हो जाती है। रौद्रध्यान के स्वरूप को जानने के लिये आगमकारो ने उसके चार लक्षण बतलाए है, जैसे किप्रोसन्नदोष
जिस की विचारधारा एव चेतना हिसादि पाप-कर्मो से निवृत्त नही हुई, चित्त-वृत्तिया कर्मों की ओर उन्मुख है, जो निर्दयतापूर्ण व्यवहार करनेवाला है, जो अपने स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए दूसरे के धन और प्राणो को भी खतरे मे डाल सकता है, जिसका जीवन लोगो के लिए भयावह है, वह रौद्रध्यान के किसी भी एक रूप मे प्रवृत्ति करता है। बहुलदोष ।
जिस का रोद्र-ध्यान अतिमात्रा मे वढा हुआ है, वह हिंसादि सभी दोपो एव अशुभ कार्यो मे प्रवृत्ति करता है।
अज्ञानदोष-कुशास्त्रो के सस्कारो से, निकृष्ट लेश्या से और अज्ञानता से हिंसा आदि पाप-कार्यो मे भी धर्म-बुद्धि से प्रवृत्ति करना अनान-दोष है।
मामरणान्तदोष-आयु-पर्यन्त किसी भी पाप-कर्म का पश्चात्ताप न करना या किसी के प्रति जो एक वार क्रोध या द्वेष उत्पन्न हो जाता है, उसे जीवन भर कभी भी न छोडना आमरयोग एक चिन्तन ]
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