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________________ विषैले रुमाल को सु घा कर दूसरो के द्रव्य का हरण करना, चोरी के नये-नये तरीके सोचना, स्तेनानवधी रौद्रव्यान है। जब मन मे लोभ होता है और जब उस लोभ को कपट सहयोग देता है तब चोरी की जाती है। चोरी के विषय में गहराई से सोचना, चोरी। करना इन सब दुष्कर्मो का अन्तर्भाव इसी ध्यान मे हो जाता है। इस ससार मे जितने भी पदार्थ है वे सब के सब पाच इन्द्रियो के विषय है - रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, सगीत के साज-बाज ये श्रोत्रेन्द्रिय विषय के साधन है। वस्त्र, आभूपण, बनाव के सभी साधन, प्रकाश, खेल-तमागे, नाटक, सिनेमा, दूरदर्शन, प्रदर्शनी इत्यादि साधन चक्षुरिन्द्रिय के विषय है। सुगन्धि के सभी पदार्थ घ्राणेन्द्रिय के विषय है । खाने-पीने का कच्चा-पक्का माल, लौंग, इलायची, पान-बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, तम्बाकूसुलफा, भाग आदि सभी पदार्थ रसनेन्द्रिय के विषय है। रेफ्रीजरेटर आदि यत्र रसनेन्द्रिय विपय के पोषक है। पुष्प-शय्या, गलीचे, पलंग, पखा, पारामकुर्सी इत्यादि सब पदार्थ स्पर्शनेन्द्रिय के विषयो के साधन हैं। इन सबकी प्राप्ति धन से होती है, धन, विषय और विषय-साधन ये सव ममत्व एवं मूर्छा के सवर्धक हैं, इनमे शकाशील बन कर रहना कि कोई इन्हे उठा न ले जाए, कोई खराब या तोड-फोड़ न करदे, कोई वलात् इन पर अधिकार न.जमा ले, कोई छीना-झपटी न करले, कोई आगज़नी न करदे, पहरे का प्रबन्ध होते हुए भी भयभीत. रहना, उन की रक्षा के लिए युद्ध करना,, हजारो-लाखो प्राणियो को मौत के घाट उतार देना, इस प्रकार की बाते सोचना या करना सरक्षणानुबधी रौद्र ध्यान है। राग-द्वेष से व्याकुल जीव में चारो प्रकार का रौद्रध्यान होता है । यह ध्यान आवागमन को बढाने वाला है और १७०] [ योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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