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प्रतिक्रमण सूत्र ।
अन्वयार्थ–'उसमें ' श्रीऋषभदेव स्वामी को 'च' और 'अजिअं' श्रीअजितनाथ को 'वंदे ' वन्दन करता हूँ। 'संभवं' श्रीसंभवनाथ स्वामी को, ' अभिणंदणं ' श्रीअभिनन्दन स्वामी को, 'सुमइं ' श्रीसुमातनाथ प्रभु को, ‘पउमप्पहं ' श्रीपद्मप्रभ स्वामी को. ' सुपासं ' श्रीसुपार्श्वनाथ भगवान् को ' च ' और 'चंदप्पहं ' श्रीचन्द्रप्रभ · जिणं ' जिन को 'वंदे ' वन्दन करता हूँ। 'सुविहिं ' श्रीमुविधिनाथ-- [ दूसरा नाम ) 'पुप्फदंत' श्रीपुष्पदन्त भगवान् को, ‘सीअल' श्रीशीतलनाथ को, 'सिज्जंस' श्रीश्रेयांसनाथ को, वासुपुज्जं ' श्रीवासुपूज्य को, — विमलं' श्रीविमलनाथ को, ' अणं ' श्रीअनन्तनाथ को, ‘धम्मं ' श्रीधर्मनाथ को 'च' और 'संति' श्रीशान्तिनाथ 'जिणं' जिनेश्वर को, 'वंदामि' वन्दन करता हूँ। ' कुंथु' श्रीकुन्थुनाथ को, 'अरं ' श्रीअरनाथ को, 'मल्लिं' श्रीमल्लिनाथ को, 'मुणिसुव्वयं श्रीमुनिसुव्रत को. 'च' और 'नमिजिणं' श्रीनमिनाथ जिनेश्वर को 'वंदे' वन्दन करता हूँ। 'रिट्ठनेमि' श्रीअरिष्टनेमि-श्रीनेमिनाथ को 'पास' श्रीपार्श्वनाथ को ' तह ' तथा 'वद्धमाणं' श्रीवर्द्धमान--श्रीमहावीर भगवान् को 'वंदामि , वन्दन करता हूँ ॥ २-४ ॥
भावार्थ---( स्तवन)। श्रीऋषभनाथ, श्रीअजितनाथ, श्री. संभवनाथ, श्रीअभिनन्दन, श्रीसुमतिनाथ. श्रीपद्मप्रभ, श्रीसुपार्श्वनाथ, श्रीचन्द्रप्रभ, श्रीमुविधिनाथ, श्रीशीतलनाथ, श्रीश्रेयांसनाथ, श्रीवासुपूज्य, श्रीविमलनाथ, श्रीअनन्तनाथ, श्रीधर्मनाथ, श्रीशान्तिनाथ, श्रीकुन्थुनाथ, श्रीअरनाथ, श्री.