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उ० ८ परिभट्ठवगरण०]
सुत्तागमे
॥ २०७ ॥ से अहालहुसगं सेज्जासंथारगं जाए(गवेसे)जा जं चक्किया एगेणं हत्थेणं ओगिज्झ जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा चउयाहं वा पं(चाहं वा दूरमवि)चगाहं वा अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वुड्डावासासु भविस्सइ ॥ २०८ ॥ थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा मत्तए वा चेले वा चेलचिलमिली वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडिया(भत्ताए वा पाणा)ए (वा) पविसित्तए वा णिक्खमित्तए वा, कप्पइ ण्हं संणियहचारीणं दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता (परिहारं) परिहरित्तए ॥ २०९ ॥ नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेजासंथारगं दोचं पि ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए ॥ २१० ॥ कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए ॥ २११॥ नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अ(पच्च)प्पिणित्ता दोच्चं पि (तमेव)
ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता अहिद्वित्तए, कप्पइ (०) अणुण्णवेत्ता (०)॥ २१२ ॥ नो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुण्णवेत्तए ॥ २१३ ॥ कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पुव्वामेव ओग्गहं अणुण्णवेत्ता तओ पच्छा ओगिण्हित्तए ॥ २१४ ॥ अह पुण एवं जाणेजा, इह खलु णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा नो सुलभे पाडिहारिए सेज्जासंथारए त्ति कट्ठ एव ण्हं कप्पइ पुवामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुण्णवेत्तए, मा व(दु)ह(ओ)उ अज्जो० व(त्तियं)इ अणुलोमेणं अणुलोमेयव्वे सिया ॥ २१५॥ णिग्गंथस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भटे सिया, तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय जत्थेव (ते) अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएजा-इ(मं ते)मे भे अजो ! किं परिणाए ? से य वएजा-परिणाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया, से य वएजा-नो परिणाए, तं नो अप्पणा परि (जए)जेजा नो अ(ण्णेसिं)ण्णमणस्स दावए, एगते बहुफासुए (पएसे पडिलेहित्ता) थंडिल्ले परिटवेयव्वे सिया॥२१६ ॥ णिग्गंथस्स णं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमिं वा णिक्खंतस्स अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भटे सिया, तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय जत्थेव अण्णमण्णं पासेज्जा तत्थेव एवं वएजा-इमे (ते) मे अज्जो ! किं परिण्णाए? से य वएना-परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया, से य वएजा-नो परिणाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेजा नो अण्णमण्णस्स दावए, एगंते बहुफासुए थंडिल्ले परिटवेयव्वे सिया ॥ २१७ ॥