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________________ ८१० सुत्तागमे [ववहारो वएज्जा-दुस्समुक्किटुं ते अजो ! निक्खिवाहि, तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केड छेए वा परिहारे वा, जे (तं) साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उठाए विहरं (अब्भुढ़ें) ति (तेसिं) सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ॥ ११३ ॥ आयरियउवज्झाए ओहायमाणे अण्णयरं वएजा-अजो! ममंसि णं ओहावियंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे, से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे, अत्थि याइं थ अण्णे केइ समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, नत्थि याइं थ अण्णे केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे, तंसि च णं समुक्किट्ठसि परो वएजा-दुस्समुक्किळं ते अज्जो ! निक्खिवाहि, तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा, जे साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उठाए विहरति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ॥ ११४ ॥ आयरियउवज्झाए सरमाणे (परं) जाव चउरायपंचरायाओ कप्पागं भिक्खुं नो उवट्ठावेइ, कप्पाए अत्थि याइं थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि याइं थ से केइ माणणिजे कप्पए, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११५॥ आयरियउवज्झाए असरमाणे परं चउ(पंच)रायाओ कप्पागं भिक्खु नो उवठ्ठावेइ, कप्पाए अत्थि याइं थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केइ छए वा परिहारे वा, नत्थि याई थ से केइ माणणिजे कप्पाए, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११६ ॥ आयरियउवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसरायकप्पाओ कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ, कप्पाए अत्थि याइं थ से केइ माणणिजे कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि याइं थ से केइ माणणिजे कप्पाए, संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं (जाव) उद्दिसित्तए (०)॥११७॥ भिक्खू य गणाओ अवकम्म अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरेजा, तं च केइ साहम्मिए पासित्ता वएज्जा-कं अज्जो ! उवसंपज्जित्ताणं विहरसि ? जे तत्थ सत्वराइणिए तं वएजा, राइणिए तं वएज्जा। अह भंते ! कस्स कप्पाए ? जे तत्थ सव्वबहुस्सुए तं वएजा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणाउववायवयणणिइसे चिहिस्सामि ॥ ११८ ॥ बहवे साहम्मिया इच्छेन्जा एगयओ अभिणिचारियं चारए, कप्पइ नो ण्हं थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिणिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिणिचारियं चारए, थेरा य से वियरेज्जा ए(वं)वण्हं कप्पइ एगयओ अभिणिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेजा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिणिचारियं चारए, जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिणिचारियं चरंति, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११९॥ चरियापविढे १ णाणाइयणिमित्तं ।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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