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सुतागमे
[ चंदपण्णत्ती
सोलस मंडलाई चरइ सीयालीस एहिं भागेहिं अहियाई चोद्दसहिं अट्ठासीएहिं मंडलं छेत्ता ॥ ८३ ॥ ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं चंदे कइ मंडलाई चरइ ? ता एवं अद्धमंडलं चरइ एकतीसाए भागेहिं ऊणं णवहिं पण्णरसेहिं अद्धमंडलं छेत्ता, ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं सूरिए कइ मंडलाई चरइ ? ता एवं अद्धमंडलं चरइ, ता एगमेगेणं अहो - रत्तेणं णक्खत्ते कइ मंडलाई चरइ ? ता एवं अद्धमंडलं चरइ दोहिं भागेहिं अहियं सत्तहिं बत्तीसेहिं सएहिं अद्धमंडलं छेत्ता, ता एगमेगं मंडलं चंदे काहिं अहोरत्तेहिं चरइ ? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरइ एकतीसाए भागेहिं अहिएहिं चउहिं चोयाले हिं सएहिं राईदिएहिं छेत्ता, ता एगमेगं मंडलं सूरे कइहिं अहोरत्तेहिं चरइ ? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरइ, ता एगमेगं मंडलं णक्खत्ते कइहिं अहोरत्तेहिं चरइ ? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरइ दोहिं ऊणेहिं तिहिं सत्तट्ठेहिं सएहिं राईदिएहिं छेत्ता, ता जुगेणं चंदे कइ मंडलाई चरइ ? ता अट्ठ चुलसीए मंडलसए चरइ, ता जुगेणं सूरे कइ मंडलाई चरइ ? ता णवपण्णरसमंडलसए चरइ, ता जुगेणं णक्खत्ते कइ मंडलाई चरइ ? ता अट्ठारस पणतीसे दुभागमंडलसए चरइ । इच्चेसा मुहुत्तगई रिक्खाइमा - सराइंदियजुगमंडलपविभत्ता सिग्घगई वत्थू आहितेति ( वजा ) बेमि ॥ ८४ ॥ पण्णरसमं पाहुडं समत्तं ॥ १५ ॥
ता कहं ते दोसिणालक्खणे आहिएति वएज्जा ? ता चंदलेसाइ य दोसिणाइ य दोसिणाइ य चंदलेसाइ य के अट्ठे किं लक्खणे ?, ता एगट्ठे एगलक्खणे, ता कहं ते सूरलक्खणे आहिएति एज्जा ? ता सूरलेस्साइ य आयवेइ य आयवेइ य सूरलेस्साइ य के अट्ठे किं लक्खणे ?, ता एगट्ठे एगलक्खणे, ता कहं ते छायालक्खणे आहिति एजा ? ता अंधारेइ य छायाइ य छायाइ य अंध्यारेइ य के अट्ठे किं लक्खणे ?, ता एगट्ठे एगलक्खणे ॥ ८५ ॥ सोलसमं पाहुडं समत्तं ॥ १६ ॥
ता कहं ते चयणोववाया आहितेति वएज्जा ? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडि - वत्तीओ पण्णत्ताओ, तं०-तत्थ एगे एवमाहंसु-ता अणुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववजंति० एगे एवमाहंसु १, एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति२, एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव ता एगे पुण एवमाहंसु-ता अणुउस्सप्पिणिओसप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववजंति • एगे एवमाहंसु २५, वयं पुण एवं वयामो-ता चंदिमसूरिया णं जोइसिया देवा महिड्डिया महज्जुइया महाबला महाजसा महासोक्खा महाणुभावा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अवोच्छित्तिणयट्टयाए काले अण् चयंति अण्णे उववज्जंति० ॥ ८६ ॥ सन्त्तरसमं पाहुडं समन्तं ॥ १७ ॥