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________________ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ णायपुत्तमहावीरस्स श्रीसूत्रागमप्रकाशकसमिति (गुड़गाँव पूर्व पंजाब) हवाई तूफानकी अंधड़ प्रगतिके समान चलनेवाले इस युगमें प्रचार के कार्यका महत्व समझाने की आवश्यकता नहीं रह जाती । क्यों कि “मूली गाजर और साग भी बोलनेवाले के ही बिकते हैं।" इसे कौन नहीं जानता । तदनुसार हमारी संस्थाने भी जिस कामका भार उठाया है, जैन जगत्को इस विषय में कुछ समझानेकी आवश्यकता है यदि आप ध्यान देकर पढ़ जायँ तो परिस्थिति समझने में तनिक भी विलंब न होगा। इस संस्थाको साधन-सामग्री मिलनेपर पाँच कार्य अपनी समाज के हितार्थ करने हैं, जैसे कि (१) आगम-सूत्र तथा भगवान् के सिद्धान्तोंको लोकभाषाओंमें प्रगट करना। (२) अपने मुनिराजोंको प्रखर एवं प्रकांड विद्वान वनाना। (३) दुनियाभरके पुस्तकालयों में आगमसूत्रों के पहुँचानेकी व्यवस्था करना । (४) जैन धर्मके तत्वोंका प्रचार करनेके लिए उच्चकोटीके योग्य लेखक और प्रचारक तैयार करना तथा भारत के मुख्य २ केंद्रोंमें चर्चासंघ स्थापन करना, जिनमें अनेकांतीय चर्चाकार भगवान्के स्याद्वाद को विश्वव्यापी बनाने में तारतम्य चर्चा कर सकें। (५) जैन-विचारोंकी अपेक्षा रखकर जैन-यूनीवरसिटी स्थापन करना। इनमें सबसे पहले १-२-३ नं० के कार्योंको सफल बनानेका निश्चय किया है। पहला कार्य-सूत्रागम, अर्थागम और उभयागमकी सौत्रिक रीतिके अनुसार ३२ आगमोंका मूल तथा उनके हिन्दी आदि अनुवाद प्रकाशित किए जायँगे । तदनन्तर ३२ आगमोंकी प्राकृतटीका और संस्कृतटीका आधुनिक युगकी पद्धतिसे रची जायेंगी । जो कि अपने समयकी अभूतपूर्व और अश्रुतपूर्व वस्तु होगी । साथ ही समाजमें प्राकृत भाषाके प्रचारार्थ 'प्राकृतं' या 'पाइयं' जैसे पत्र भी निकाले जायँगे जिसमें मात्र प्राकृत और अर्धमागधीके लेखोंको ही स्थान मिलेगा । सूत्रागमप्रकाशनके साथ २ एक 'प्राकृतकोष' प्राकृतगाथावद्ध तैयार किया जारहा है। जिसकी १११८ गाथाओंकी रचना भी हो चुकी है । यह सागरके समान बड़ा और रचनामें अद्वितीय विलक्षण और सुगमतामें इतना उत्तम होगा कि फिर किसी भी प्राकृतकोषका आश्रय लेनेकी तनिक भी आवश्यकता न पड़ेगी।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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