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इसके अतिरिक्त स्थानकवासी धारणा के अनुसार त्रिशष्टिशलाका पुरुषचरि- और एक हजार कथाओंका एक बड़ा कथाकोष भी तैयार किया जायगा । ये दोनों ग्रन्थ भी प्राकृत में ही रचे जायेंगे।
आपको यह भी स्मरण रहे कि 'मुत्तागमे' नामक पहला ग्रंथ १३.,... पेजका महान् पुस्तकरत्न प्रकाशित हो चुका है जिसमें ११ अंग सूत्र समाविष्ट है दूसरा भाग आपके करकमलोंमें है ही, जिसमें शेष २१ सूत्रोंका समावेग है जो कि प्रत्येक जैन के 'गृहपुस्तकालय' की अमूल्य विभूति है और गायु मुनिराजोंके हृदयकी तो आदर्श वस्तु है । अधिक क्या लिखा जाय! हाथ कंगनको आरसी क्या? वस्तुका तथ्य सामने प्रस्तुत है इसे दगाकर आपका अंतरात्मा एकदम यही कह उठेगा कि यह तो बौद्धोंके "ए-र-रि-य-, क्यू-अर-रम-'"के समान् महाकाय विभूति हमारी समाजमें भी है। इसका अर्थागम और भयागम लोकभाषाभाषियों के लिए तो मानो सम्यग्ज्ञानका महाभंडार ही होगा। इसका देहसूत्र इतना विशालतम होगा जैसा कि एनसाईकलोपीडिया-विटानिका का महाग्रंथ होता है । इस ग्रंथमहोदधिमें जिरा जटिल विषयको इंदोगे उसका सर तुरंत आपको उसीमें मिलेगा! मिलेगा! मिलेगा ! और फिर मिलेगा! यह बानी टोक कर दावेसे कहा जा सकता है, जिनवाणी के द्वारसे भला कोई मुमुश्च या जिशान कभी निराश लौटा है ? कमी नहीं । तब फिर रेडियोपर यद्वा नद्रा बोलने वालों की तूती बंद हो जायगी।
ये प्रकाशन इतने शुद्धतम और पवित्र होंगे कि धानंदकी शादी में पपिहासकोंके पैरके तले से धरती खिसकती प्रतीत होगी । आगमक तीनों भागांका खाध्याय आपको बता देगा कि सचमुच जैन धर्म कितना विश्वव्याप्य धर्म है।
अभी २ हाल ही में विश्वशांतिके इच्छुक (लगभग ४० दशक ) विद्वानांकी एक सभा शांतिनिकेतनमें हुई थी। उन्होंने वहां जैनधर्मसंबंधी चर्चा स्कूब जी भर कर की थी। जिसका सार कलकत्ता यूनीवरसिटीके अंतर्राष्ट्रीय र यातिप्राप्त डॉ. कालीदास नागने स्पष्टशब्दोंमें बिना किसी लागलपेट के यह प्रकट किया है कि "जैन धर्म सार्वभौमिक धर्म है।” परन्तु खेदका विषय है कि जनान 'जन सिद्धान्तोंका विश्वव्यापी प्रचार ही नहीं किया, वरन् यह अखिल विश्वका लोकप्रिय धर्म बनता । सच कहा जाय तो जैन साहित्यका प्रचार दुनिया में सौ भागमें भी
१ लंदनमें "ब्रिटिश एण्ड फॉरेन बाइबिल सोसायटी” नामकी एक संस्था बहुत पुरानी है। इसका उद्देश्य बाईबिलका प्रचार करना है। इसके १२० वें नियमसे बहुत कुछ ज्ञातव्य सामग्री मिलती है इसका कुछ सारभाग इस प्रकार है।