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________________ प०३ सूर २ चंद २ अंतरं] सुत्तागमे सूरा य होंति एक्केक्कए पिडए ॥ ४ ॥ छावट्ठी पिडगाइं नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छप्पन्नं नक्खत्ता य होंति एक्केकए पिडए ॥ ५॥ छावट्ठी पिडगाई महागहाणं तु मणुयलोगंमि । छावत्तरं गहसयं च होइ एकेक्कए पिडए ॥ ६ ॥ चत्तारि य पंतीओ चंदाइच्चाण मणुयलोगंमि । छावट्ठिय छावट्ठिय होइ य एकेकया पंती ॥ ७ ॥ छप्पन्नं पंतीओ नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छावट्ठी छावट्ठी हवइ य एकेकया पंती ॥ ८ ॥ छावत्तरं गहाणं पंतिसयं होइ मणुयलोगंमि। छावट्ठी छावट्ठी य होइ एकेकया पंती ॥९॥ ते मेरु परियडन्ता पयाहिणावत्तमंडला सव्वे । अणवट्ठियजोगेहिं चंदा सूरा गहगणा य ॥ १० ॥ नक्खत्ततारगाणं अवट्ठिया मंडला मुणेयव्वा । तेऽविय पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति ॥ ११ ॥ रयणियरदिणयराणं उड्ढे व अहे व संकमो नत्थि । मंडलसंकमणं पुण अभितरबाहिरं तिरिए ॥ १२ ॥ रयणियरदिणयराणं नक्खत्ताणं महग्गहाणं च । चारविसेसेण भवे सुहदुक्खविही मणुस्साणं ॥ १३ ॥ तेसिं पविसंताणं तावक्खेत्तं तु वडए नियमा। तेणेव कमेण पुणो परिहायइ निक्खमंताणं ॥ १४ ॥ तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिया होइ तावखेत्तपहा । अंतो य संकुया बाहि वित्थडा चंदसूरगणा ॥ १५॥ केणं वड्डइ चंदो परिहाणी केण होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा केणऽणुभावेण चंदस्स ? ॥ १६ ॥ किण्हं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ ॥ १७ ॥ बावडिं वावडिं दिवसे दिवसे उ सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्डइ चंदो खवेइ तं चेव कालेणं ॥ १८ ॥ पन्नरसइभागेण य चंदं पन्नरसमेव तं वरइ । पन्नरसइभागेण य पुणोवि तं चेव तिकमइ ॥ १९ ॥ एवं वड्डइ चंदो परिहाणी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हा वा तेणणुभावेण चंदस्स ॥ २० ॥ अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा । पञ्चविहा जोइसिया चंदा सूरा गहगणा य ॥ २१ ॥ तेण परं जे सेसा चंदाइच्चगहतारनक्खत्ता । नत्थि गई नवि चारो अवठिया ते मुणेयव्वा ॥ २२ ॥ दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य ॥ २३ ॥ दो दो जंबुद्दीवे ससिसूरा दुगुणिया भवे लवणे । लावणिगा य तिगुणिया ससिसूरा धायईसंडे ॥ २४ ॥ धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठतिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया अणंतराणंतरे खेत्ते ॥ २५ ॥ रिक्खग्गहतारग्गं दीवसमुद्दे जहिच्छसे नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं रिक्खग्गहतारगाणं तु ॥ २६ ॥ चंदाओ सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ । पन्नास सहस्साइं तु जोयणाणं अणूणाई ॥२७॥ सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो य अंतरं होइ । बहियाओ मणुस्सनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥ २८ ॥ सूरतरिया चंदा चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता ।
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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