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सुत्तागमे
[ उत्तरज्झयणसुत्तं च किंचि, तस्संतगं गच्छइ वीयरागो ॥ १९ ॥ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भुजमाणा । तं खुड्डए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इंदियाणं विसया मणुन्ना, न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुन्नेसु मणं पि कुजा, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ २१ ॥ (१) चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ २२ ॥ रूवस्स चक्खं गहणं वयंति, चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ २३ ॥ रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ॥ २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रूवं अवरज्झई से ॥ २५ ॥ एगंतरत्ते रुइरंसि स्वे, अतालिसे से कुणई पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, 'न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ २६ ॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिटे ॥ २७॥ स्वाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥ २८ ॥ रूवे अतित्ते य परिग्गहमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिँ । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥३०॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ३२ ॥ एमेव वंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न 'लिप्पए भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ (२) सोयस्स सदं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सहस्स सोयं गहणं वयंति, सोयस्स सदं गहणं वयंति । रागस हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेडं अमणुनमाहु ॥ ३६ ॥ सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ॥ ३७ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सई अवरज्झई से ॥ ३८ ॥