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अ० ३२ गंधासत्तिफलं] सुत्तागमे
१०४१ एगंतरत्ते रुइरंसि सद्दे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न 'लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिटे ॥ ४० ॥ सद्दाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ४१ ॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहंमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढिं। अतुढ़िदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ४३ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ४४ ॥ सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ४५ ॥ एमेव सइंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्वचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६ ॥ सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥४७॥ (३) घाणस्स गंधं गणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेमु स वीयरागो ॥ ४८ ॥ गंधस्स घाणं गहणं वयंति, घाणस्स गंधं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गंधेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावद से विणासं । रागाउरे ओसहगंधगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतृ., न किंचि गंधं अवरज्झई से ।। ५.१ ॥ एगंतरते रुइरंसि गंधे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिपई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ।। गंधाणुगामाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगावे । चित्तहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिडे ॥ ५३ ॥ गंधाशुवारण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्षणसनिओगे । वए विओगे य कहं मुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥ ४ ॥ गंधे अतिते य परिग्गहंमि, सत्तोवसस्तो न उवेइ तुहि । अतुढिदोसेण दुही परस्ग, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तण्हाभिभूयस्म अदत्तहारिणो, गंधे अतिनस्य परिग्गहे य । मायामुसं वहइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुबई से ।। ५६ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदनाणि ममाययतो, गंधे अतिसो दुहिओ अणिस्सो ॥ १.७ ॥ गंधाणुरत्तस्य नरस्म एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेगदुक्खं, निव्वत्तई जस्म कएण