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सुत्तागमे
[ उत्तरज्झयणसुत्तं अत्थलोलाणं पुरिसाणं अपत्थणि(जे)जो भवइ ॥ ४७ ॥ अजवयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? अजवयाए णं जीवे काउज्जुययं भावुजुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ॥ ४८ ॥ मद्दवयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? महवयाए णं जीवे अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्ठमयट्ठाणाई निट्ठावेइ ॥ ४९ ॥ भावसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भावसच्चेणं जीवे भावविसोहिं जणयइ । भावविसो[ही]हिए वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुढेइ । अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुट्टित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ ॥ ५० ॥ करणसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? करणसच्चेणं जीवे करणसत्तिं जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ ॥ ५१ ॥ जोगसच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? जोगसच्चेणं जीवे जोगं विसोहेइ ॥ ५२ ॥ मणगुत्तयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? मणगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ॥ ५३ ॥ वयगुत्तयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वयगुत्तयाए णं जीवे निव्वियारत्तं जणयइ । निव्वियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भवइ ॥ ५४ ॥ कायगुत्तयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कायगुत्तयाए णं जीवे संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ ५५ ॥ मणसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ । नाणपज्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ, मिच्छत्तं च निजरेइ ॥ ५६ ॥ वयसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वयसमाहारणयाए णं जीवे वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं निव्वत्तेइ, दुलहबोहियत्तं निजरेइ ॥ ५७ ॥ कायसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कायसमाहारणयाए णं जीवे चरित्तपज्जवे विसोहेइ । चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ॥ ५८ ॥ नाणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे किं जणथइ ? नाणसंपन्नयाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ। गाहा-जहा सूई ससुत्ता, पडिया न विणस्सइ। तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ॥ १॥ नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयविसारए य असंघायणिज्जे भवइ ॥ ५९ ॥ दंसणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सणसंपन्नयाए णं जीवे भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ।