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________________ १०३३ अ० २९ मुत्तीफलं ] सुत्तागमे अपीहेमाणे अपत्थेमाणे अणभिलसमाणे दुष्च्चं सुहसेज्जं उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ ३३ ॥ उवहिपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? उवहिपञ्चक्खाणेणं जीवे अपलिमंथं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निक्कंखी उवहिमंतरेण य न संकिलिस्सइ ॥ ३४ ॥ आहार पच्चक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणेणं जीवे जीविया - संसप्पओगं वोच्छिदइ । जीविया संसप्पओगं वोच्छिदित्ता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सइ ॥ ३५ ॥ कसायपच्चक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं जीवे वीयरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ ३६ ॥ जोगपञ्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं जीवे अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं निज्जरेइ ॥ ३७ ॥ सरीरपच्चक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सरीरपञ्चक्खाणेणं जीवे सिद्धाइसयगुणकित्तणं निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ ३८ ॥ सहायपचक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं जीवे एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्पझंझे अप्पकलहे अम्पकसाए अप्पतुमतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यात्रि भवइ ॥ ३९ ॥ भत्तपचक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणं जीवे अगाई भवसयाई निभइ ॥ ४० ॥ सम्भावपच्चक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सब्भावपच्चक्खाणं जीवे अनियहिं जणयइ । अनियट्टिमडियन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तंजहा — वैयणिज्जं आउयं नामं गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच परिनिब्वाय सव्वदुक्खाणमंत करेइ ॥ ४१ ॥ पडिवयाए णं भंते ! जीव किं जणय ? पडिम्बयाए णं जीवें लाघवियं जणयन् । लघुभए णं जीवे अप्पमते पागडलिंगे पत्थलिंगे विमुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमते सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु बीससणिजम् अप्पडिलेहे जिइंदिए विउलतवसमिसमन्नागए यावि भवइ ॥ ४२ ॥ वेयात्रष्येणं अंत ! जीवे किं जणयइ ? वैयावचेणं जीवे तित्थयरनामगोतं कम्मं निबंधइ ॥ ४३ ॥ सव्वगुणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ! सव्वगुणसंपन्नयाए णं जीचे अपुणरावतिं जणयइ । अपुणरावतिं पत्तए य णं जीव सारी माणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवः ॥ ४४ ॥ वीयरागयाए णं भंते ! जीवे किं जयइ ? वीयरागयाए णं जीवे नेहाणुवंधणाणि तव्हाणुबंधणाणि य वोच्छिंदर, मणुनामणुन्नेसु सद्दफरिसस्वरसगंधेमु (सचित्ताचितमीसएस ) चैत्र विरज्जइ ॥ ४५ ॥ खंतीए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? खंतीए णं जीवे परीस हे जिइ ॥ ४६ ॥ मुक्तीए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? मुतीए णं जीव अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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