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एगवीसइमज्झयणसमत्ती] सुत्तागमे
१०१५ तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए ॥ ४ ॥ खेमेण आगए चंपं, सावए वाणिए घरं । संवड्डई तस्स घरे, दारए से सुहोइए ॥ ५ ॥ बावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोव्वणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥ ६ ॥ तस्स स्ववइं भजं, पिया आणेइ रूविणिं । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुंदओ जहा ॥ ७ ॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ। वज्झमंडणसोभागं, बझं पासइ वज्झगं ॥ ८ ॥ तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी । अहोऽसुभाण कम्माणं, निजाणं पावगं इमं ॥ ९॥ संबुद्धो सो तहिं भयवं, परमसंवेगमागओ। आपुच्छऽम्मापियरो, पव्वए अणगारियं ॥ १० ॥ जहित्तु सग्गंथ महाकिलेसं, महंतमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चऽभिरोयएजा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥ ११ ॥ अहिंससच्चं च अतेणगं च, तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंचमहव्वयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥ सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी, खंतिक्खमे संजयवंभयारी । सावजजोगं परिवज्जयंतो, चरिज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥ १३ ॥ कालेण कालं विहरेज रहे, बलावलं जाणिय अप्पणो य। सीहो व सद्देण न संतसेजा, वयजोग सुच्चा न असब्भमाहु ॥ १४ ॥ उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा, पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थऽभिरोयएज्जा, न यावि पूर्व गरहं च संजए ॥ १५॥ अणेगछंदा इह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा, दिव्या मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥ परीसहा दुव्विसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज भिक्खू , संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओसिणा दंसमसा य फासा, आयंका विविहा फुसंति देहं । अकुकुओ तत्थऽहियासएज्जा, रयाई खेवेज पुराकयाई ॥ १८ ॥ पहाय रागं च तहेब दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो। मेरुव्व बाएण अकंपमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १९ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न ग्रावि पूर्य गरहं च संजए । स उजुभावं पडिवज संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥ २० ॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणवं । परमट्टपपर्हि चिट्ठई, छिन्नसोए अममे
अकिंचणे ॥ २१ ॥ विवित्तलयणाइ भएज ताई, निरोवलेवाइ असंथडाई। इसीहिं चिण्णाई महायसेहि, कारण फासेज परीसहाई ॥ २२ ॥ सन्नाणनाणावगए महेसी, अणुत्तरं चरिडं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सरिए बंतलिक्रये ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सबओ विप्पमुके । नरित्ता समुई व महाभवोघं, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥ ति-ब्रेमि ॥ इति समुद्दपालीयं णाम एगवीसइमं अज्झयणं समतं ॥ २१ ॥