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अ० १४ कमलावईए रायपडिबोहो ] सुत्तागमे
साहीणमिव तुब्भं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहिं चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी, वहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ॥ १७ ॥ जहा य अग्गी अरणी असंतो, खीरे घयं तेलमहातिलेसु । एमेव जाया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छई नासइ नावचिट्ठे ॥ १८ ॥ नो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा विय होइ निच्च । अज्झत्थहेउं निययस्स बंधो, संसारहेउं च वयंति बंध ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा। ओरब्भमाणा परिरक्खयंता, तं नेव भुज्जो वि समायरामो ॥ २० ॥ अव्भाहयम्मि लोगम्मि, Roas परिवार | अमोहाहिं पडतीहिं, गिहंसि न रई लभे ॥ २१ ॥ केण अब्भाहओ लोगो ?, केण वा परिवारिओ ? । का वा अमोहा वृत्ता ?, जाया चिंतावरो हुमे ॥ २२ ॥ मचुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ । अमोहा रयणी कुत्ता, एवं ताय विजाणह ॥ २३ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्त । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, नसा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ ॥ २५ ॥ एगओ संवसित्ताणं, दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया ! गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २६ ॥ जस्सत्थि मन्त्रणा सक्खं, जस्स वsत्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे मुए सिया ॥ २७ ॥ अज्जेव धम्मं पडिवज्जयामो, जहि पवन्ना न पुणब्भवामो | अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिद्धि ! भिक्खायरियाइ कालो । साहाहि रुक्खो लहई समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥ २९ ॥ पंखाविहूणोव्व जहेब पक्खी, भिच्चव्विहूणोव्व रणे नरिंदो । विवन्नसारो वणिओव्व पोए, पहीणपुतोमि तहा अहं पि ॥ ३० ॥ सुसंभिया कामगुणा इमे ते, संपिंडिया अग्गरसप्पभूया । भुंजामु ता कामगुणे पगामं, पच्छा गमिस्सामु पहाणमगं ॥ ३१ ॥ भुता रसा भो ! जहा णे वओ, न जीविया पजहामि भोए । लाभं अलाभं च मुहं न दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥ ३२ ॥ मा हू तुमं सोयरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाइ भए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥ ३३ ॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो, निम्मोयणि हिच पलेइ मुक्तो । एमेए जाया पयर्हति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ? ॥ ३४ ॥ छिंदितु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्वायरियं चरति ॥ ३५ ॥ नत्र कुंचा समइकमंता, तयाणि जालाणि दलितु हंसा । पर्लिति पुता य पई य मज्जं, ते हं कहं नानुगमिस्समेक्का ! ॥ ३६ ॥ पुरोहियं तं समुयं सदार,
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