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सत्तमज्झयणसमत्ती] सुत्तागमे
९६५ त्ति आलवे ॥ ३५ ॥ तहेव संखडिं नच्चा, किच्चं कजं ति नो वए । तेणगं वावि वज्झित्ति, सुतित्थित्ति य आवगा ॥ ३६ ॥ संखडिं संखडिं बूया, पणियत्ति तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि, आवगाणं वियागरे॥३७॥ तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिजत्ति नो वए । नावाहिं तारिमाउत्ति, पाणिपिजत्ति नो वए ॥ ३८ ॥ बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा। बहुवित्थडोदगा यावि, एवं भासिज पन्नवं ॥ ३९ ॥ तहेव सावजं जोगं, परस्सट्ठाए निट्ठियं । कीरमाणं ति वा नच्चा, सावजं नालवे मुणी ॥ ४० ॥ सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज वजए मुणी ॥ ४१ ॥ पयत्तपक्कत्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्नत्ति व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउयं, पहारगाढत्ति व गाढमालवे ॥ ४२ ॥ सव्वुकसं परग्धं वा, अउलं नत्थि एरिसं । अविक्कियमवत्तव्वं, अचियत्तं चेव नो वए ॥४३॥ "सव्वमेयं वइस्सामि, सव्वमेयं” ति नो वए। अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ, एवं भासिज्ज पन्नवं ॥४४॥ सुक्कीयं वा सुविक्कीयं, अकिजं किज्जमेव वा । “इमं गिण्ह इमं मुंच, पणियं" नो वियागरे ॥ ४५ ॥ अप्पग्घे वा महग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा । पणियढे समुप्पन्ने, अणवजं वियागरे ॥ ४६ ॥ तहेवासंजयं धीरो, “आस एहि करेहि वा । सयं चिट्ठ वयाहि” त्ति, नेवं भासिज्ज पनवं ॥ ४७ ॥ बहवे इमे असाहू, लोए बुच्चंति साहुणो। न लवे असाहुं साहुत्ति, साहुं साहुत्ति आलवे ॥ ४८ ॥ नाणदंसणसंपन्नं, संजमे य तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं, संजय साहुमालवे ॥ ४९ ॥ देवाणं मणुयाणं च, तिरियाणं च बुग्गहे । अमुगाणं जओ होउ, मा वा होउ त्ति नो वए ॥५०॥ वाओ वुटुं व सीउण्हं, खेमं धायं सिवं ति वा । कया णु हुज एयाणि, मा वा होउ त्ति नो वए ॥५१॥ तहेव मेहं व णहं व माणवं, न देव देवत्ति गिरं वइजा । संमुच्छिए उन्नए वा पओए, वइज वा वुट्ठ बलायत्ति ॥५२॥ अंतलिक्खत्ति णं बूया, गुज्झाणुचरियत्ति य । रिद्धिमंतं नरं दिस्स, रिद्धिमंतं ति आलवे ॥ ५३ ॥ तहेव सावजणुमोयणी गिरा, ओहारिणी जा य परोवघाइणी । से कोहलोहभयहासमाणओ, न हासमाणो वि गिरं वइज्जा ॥ ५४ ॥ सुवक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुटुं परिवज्जए सया। मियं अदुटुं अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥ ५५ ॥ भासाइ दोसे य गुणे य जाणिया, तीसे य दुढे परिवज्जए सया। छसु संजए सामणिए सया जए, वइज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥५६॥ परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए, चउक्कसायावगए अणिस्सिए। स निद्भुणे धुन्नमलं पुरेकडं,आराहए लोगमिणं तहा परं ॥ ५७॥ ति-बेमि ॥ इति सुवक्कसुद्धी णामं सत्तममज्झयणं समत्तं ॥ ७ ॥