________________
सुत्तागमे
९५८
[दसवेयालियसुत्तं भवे ॥९० ॥ न सम्ममालोइयं हुज्जा, पुवि पच्छा व जं कडं। पुणो पडिक्कमे तस्स, वोसट्ठो चिंतए इमं ॥९१ ॥ अहो जिणेहिऽसावज्जा, वित्ती साहूण देसिया। मुक्खसाहणहेउस्स, साहुदेहस्स धारणा ॥ ९२॥ नमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथवं । सज्झायं पट्ठवित्ताणं, वीसमेज खणं मुणी ॥ ९३ ॥ वीसमंतो इमं चिंते, हियमद्वं लाभमट्ठिओ । जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ ॥ ९४ ॥ साहवो तो चियत्तेणं, निमंतिज जहक्कमं । जइ तत्थ केइ इच्छिज्जा, तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥९५॥ अह कोइ न इच्छिज्जा, तओ भुंजिज एगओ। आलोए भायणे साहू', जयं अपरिसाडियं ॥ ९६ ॥ तित्तगं व कडुयं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा । एयलद्धमन्नत्थपउत्तं, महुघयं व भुंजिज्ज संजए ॥ ९७ ॥ अरसं विरसं वावि, सूइयं वा असूइयं । उल्लं वा जइ वा सुकं, मंथकुम्मासभोयणं ॥ ९८ ॥ उप्पन्नं नाइहीलिज्जा, अप्पं वा बहु फासुयं । मुहालद्धं मुहाजीवी, भुंजिजा दोसवज्जियं ॥ ९९ ॥ दुलहा उ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा। मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छंति सुग्गई ॥१०० ॥ ति-बेमि ॥ इति पिंडेसणाए पढमो उद्देसो समत्तो॥५-१॥
अह पिंडेसणाए बीओ उद्देसो
पडिग्गहं संलिहिताणं, लेवमायाइ संजए । दुगंधं वा सुगंधं वा, सव्वं भुंजे न छड्डए ॥ १ ॥ सेज्जा निसीहियाए, समावन्नो य गोयरे । अयावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं न संथरे ॥ २ ॥ तओ कारणसमुप्पन्ने, भत्तपाणं गवेसए। विहिणा पुव्वउत्तेणं, इमेणं उत्तरेण य ॥ ३ ॥ कालेण निक्खमे भिक्खू , कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ॥ ४ ॥ “अकाले चरसि भिक्खू , कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि, सन्निवेसं च गरिहसि" ॥ ५॥ सइ काले चरे भिक्खू , कुजा पुरिसकारियं । “अलाभो” त्ति न सोइज्जा, "तो" त्ति अहियासए ॥६॥ तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया । तं उज्जुयं न गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे ॥ ७ ॥ गोयरग्गपविठ्ठो य, न निसीइज कत्थइ । कहं च न पबंधिजा, चिट्टित्ताण व संजए ॥ ८ ॥ अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वावि संजए । अवलंबिया न चिट्ठिजा, गोयरग्गगओ मुणी ॥ ९॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं। उवसंकमंतं भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए ॥ १० ॥ तं अइक्कमित्तु न पविसे, न चिट्ठे चक्खुगोयरे । एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठिज संजए ॥ ११ ॥ वणीमगस्स वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तियं सिया हुजा, लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ १२॥