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चउत्थमज्झयणं उ० ४] सुत्तागमे वेयव्वा, एथवि जाणह, णत्थित्थ दोसो।” आरियवयणमेयं ॥ २४१ ॥ पुव्वं निकायसमय, पत्तेयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो, हं भो पवादिया, किं भे सायं दुक्खं उदाहु असायं ? समिया पडिवन्ने यावि एवं वूया,-सव्वेसि पाणाणं, सव्वेसि भूयाणं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेसि सत्ताणं, असायं, अपरिणिव्वाणं महन्भयं दुक्खं त्ति बेमि ॥ २४२ ॥ वीओद्देसो समत्तो॥ ___ उवेहि णं बहिया य लोयं, से सव्वलोयंमि जे केइ विन्नू ॥ २४३ ॥ अणुवीद पास, णिक्खित्तदंडा जे केइ सत्ता पलियं चयंति, णरे मुयच्चा धम्मविदुत्ति अंजू ; आरंभजं दुक्खमिगंति णञ्चा, एवमाहु संमत्तदसिणो ॥ २४४ ॥ ते सव्वे पावाझ्या दुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरंति, इति कम्मं परिन्नाय सव्वसो ॥ २४५ ॥ इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं ॥ २४६ ॥ कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं ॥ २४७ ॥ जहा जुन्नाइं कठ्ठाई हव्ववाहो पमत्थति, एवं अत्तसमाहिए अणिहे ॥२४८॥ विगिच कोहं अविकंपमाणे, इमं णिरुद्धाउयं संपेहाए ॥२४९।। ढुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं, पुढो फासाइं च फासे, लोयं च पास, विप्फंदमाणं ॥ २५० ॥ जे णिव्वुडा, पावेहि कम्मेहि अणियाणा ते वियाहिया ॥२५१॥ तम्हाऽतिविजो णो पडिसंजलिजासित्ति बेमि ॥२५२॥ तइओद्देलो समत्तो॥ __ आवीलए पवीलए निप्पीलए, जहित्ता पुव्वसंजोगं हिचा उवसमं ॥ २५३ ।। तम्हा अविमणे वीरे, सारए समिए सहिते सया जए ॥ २५४ ॥ दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियगामीगं ॥ २५५ ॥ विगिंच मंससोणियं, एस पुरिसे दवीए वीरे आयाणिजे वियाहिए, जे धुणाइ समुस्सयं वसित्ता वंभचेरंमि ॥ २५६ ॥ णित्तेहिं पलिछिन्नेहिं आयाणसोयगट्टिए वाले, अव्वोच्छिन्नबंधणे अणभिकंतसंजोए । तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो णत्थि-त्ति बेमि ॥ २५७ ॥ जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्ञ तस्स कुओ सिया ? ॥ २५८ ॥ से हु पन्नाणमंते बुद्धे आरंभोवरए, सम्ममेयंति पासह, जेण वंधं वहं घोरं परितावं च दारुगं ॥ २५९ ॥ पलिछिदिय वाहिरगं च सोयं, 'णिकम्मदंसी इह मच्चिएहि ॥ २६० ॥ कम्माणं सफलं दट्ठण तओ णिज्जइ पुचवी ॥ २६१ ॥ जे खलु भो ! वीरा ते समिता सहिता सयाजता संघडदंसिगो
आतोवरया अहातहं लोगमुवेहमाणा पाईणं पडीगं दाहीणं उदीणं इति सच्चंसि परिचिठिसु ॥ २६२ ॥ साहिस्सामो णाणं वीराणं समियाणं सहियाणं, सयाजताणं
संघडदंसिणं आतोवरयाणं अहातहं लोगंसमुवेहमाणाणं किमत्थि उवाधी? पासगस्स - ण विज्जति णत्यित्ति बेमि ॥ २६३ ॥ चउत्थोद्देसो समत्तो॥
सम्मत्तं णाम चउत्थमज्झयणं समत्तं