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________________ वि०प० स० ८ उ०८] सुत्तागमे. ५५७ पुचपडिवन्नए पडुच मणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधति, पडिवजमाणए पडुच्च मणुस्सो वा वंधइ १ मणुस्सी वा वंधइ २ मणुस्सा वा बंधति ३. मणुस्सीओ वा बंधति ४ अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बंधई ५ अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य बंधन्ति ६ अहवा मणुस्सा य मणुस्सी य बंधइ ७ अहवा मणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधंति ॥ तं भंते! किं इत्थी वंधइ पुरिसो बंधइ नपुंसगो बंधइ, इत्थीओ वंधन्ति पुरिसा बंधति नपुंसगा वंधन्ति, नोइत्थीनोपुरिसोनोनपुंसओ वंधइ ? गोयमा ! नो इत्थी बंधइ नो पुरिसो बंधइ जाव नो नपुंसगा वंधन्ति, पुवपडिवन्नए पडुच्च अवगयवेया वंधति, पडिवजमाणए य पडुच्च अवगयवेओ वा वंधई अवगयवेया वा बंधति ॥ जइ भंते ! अवगयवेओ वा बंधइ अवगयवेया वा वंधति तं भंते ! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ १ पुरिसपच्छाकडो वंधइ २ नपुंसगपच्छाकडो बंधइ ३ इत्थीपच्छाकडा बंधति ४ पुरिसपच्छाकडा वंधति ५ नपुंसगपच्छाकडा बंधति ६ उदाहु इत्थिपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ, उदाहु इत्थिपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडा य वंधति, उदाहु इत्थिपच्छाकडा यं पुरिसपच्छाकडो य वंधइ, उदाहु इस्थिपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य वंधति, उदाहु इत्थीपच्छाकडो य गपुंसगपच्छाकडो य बंधइ.-४ उदाहु पुरिसपच्छाकडो य णपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ४ उदाहु इत्थिपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य णपुंसगपच्छाकडो य(वंधइ)भाणियव्वं ८, एवं एए छव्वीसं भंगा २६ जाव उदाहुँ इत्थीपच्छाकडा ये पुरिसप० नपुंसगप० बंधति ? गोयमा ! इत्थिपच्छाकडोवि वंधइ १ पुरिसपच्छाकडोवि बंधइ २ नपुंसगपच्छाकडोवि बंधइ ३ इत्थीपच्छाकडावि वधति ४ पुरिसपच्छाकडावि वंधति ५ नपुंसगपच्छाकडावि बंधति ६ अहवां इत्थीपच्छाकडो पुरिसपच्छाकडो य वंधई ७ एवं एंए चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा, जाव अहवा इत्थिपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य नपुंसगपच्छाक्रडा य वंधति ॥ तं भंते ! किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ १ बंधी बंधइ न बंधिस्सइ २ बंधी न वंधइ बंधिस्सइ ३ बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ४ न बंधी बंधइ बंधिस्सइ ५ न वंधी वंधइ न वंधिस्सइ ६ . न वंधी न वंधइ बंधिस्सइ ७ न वंधी न बंधइ न वंधिस्सइ ८ ? गोयमा ! भवागरिसं पडुच्च अत्थेगइए वंधी वंधइ वंधिस्सइ अत्थेगइए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, एवं तं चेव सव्वं जाव अत्येगइए न वंधी न बंधइ न वंधिस्सइ, गहणागरिसं पडुच्च अत्थेगइए वंधी वंधड़ बंधिस्सइ एवं जाव अत्थेगइए न बंधी बंधइ बंधिस्सइ, णो चेव णं न बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगइए न वंधी न बंधइ बंधिस्सइ अत्थेगइए न बंधी नबंधइ न बंधिस्सइ ॥ तं भंते ! कि साइयं सपजवसियं बंधइ साइयं अपज्जवसियं
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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