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________________ सुत्तागमे [भगवई ५१६ जं वेदेंसु तं निजरिंसु ? एवं नेरइयावि एवं जाच वेमाणिया । सेनृणं भंते! जे वेदेति तं निजरेंति जं निजरिति तं वेदेति ?, गोयमा ! णो निणंटे सगटे, में कंगटेणं भंते ! एवं वुचइ जाव नो तं वेटेंति ?, गोयमा ! कम्मं वदति नोकमननरेंति, से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेति, एवं नेरझ्यापि जान दमानिया में नूणं भंते ! ज वेदिस्संति तं निजरिस्संति जं निजरिस्संति तं वेदिस्तंति, गोगमा: णो तिणढे समढे, से केपट्टेणं जाव णो तं वैदिरसंति ?, गोयमा ! कम्मो बस्तिति नोकम्मं निजरिस्संति, से तेणढेणं जाव नो तं निजरिस्संति, एवं नरप्यारि जान वेमाणिया । से पूर्ण भंते ! जे चेयणासमए से निजरानमा जे निजराजमए में वेयणासमए ?, नो तिणढे समढे, से केगडेणं भने ! एवं बुगड जे चेयगासमए न से निजरासमए जे निजरासमए न से वैयणासमए ?, गोयमा ! जं नमनं वदति नो तं समयं निजरेंति जं समयं निजरेंति नो तं ममनं वदंति, अनम्मि राना वेदेति अन्नम्मि समए निजरेंति अन्ने से वेयणासमए अने से निजरासमए, में तेणटेणं जाव न से वेयणासमए न से निजरासमए । नेरइयाणं भंत! जे वयणासमए से निजरासमए जे निजरासमए से वेयणासमए ?, गोयमा! णो तिमले समढे, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ नेरइयाणं जे चेयणासमए न से निजरासमए जे निजरासमए न से वेयणासमए ?, गोयमा ! नेरड्या णं जं समयं वेदेति णोतं समयं निजरेंति जं समयं 'निजरेंति नो तं समयं वेदेति अन्नम्मि समए वेदेति अन्नम्मि समए निजरेंति अन्ने से वेयणासमए अन्ने से निजरासमए, से तेणटेणं जाव न से वेयणासमए एवं जाव वेमाणिया ॥ २७८ ॥ नेरड्या णं भंते । कि सासया असासया ?, गोयमा ! सिय सासया सिय असासया, से केगट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ नेरइया सिय सासया सिय असासया ?, गोयमा ! अव्बोच्छित्तिणयट्याए सासया वोच्छित्तिणयट्टयाए असासया, से तेणटेणं जाव सिय सासया सिय असासया, एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥२७९॥ सत्तसे सए तइओ उद्देसो समत्तो॥ रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-कइविहा णं भंते ! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ?, गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया एवं जहा जीवाभिगमे जाव सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा ॥ जीवा छविह पुढवी जीवाण ठिई भवट्टिई काए । निल्लेवण अणगारे किरिया सम्मत्तमिच्छत्ता ॥१॥ सेवं भते ! सेवं भंते ! त्ति ॥२८०॥ सत्तसए चउत्थो उद्देसो समत्तो॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं भंते। कइविहे
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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