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________________ श्रेणिक बिम्बसार पूर्वक सेवा करता रहूँगा ।" इसके पश्चात् प्रधान सेनापति भद्रसेन ने शस्त्र हाथ मे लेकर कहा"मे भद्रसेन सूर्य, अग्नि तथा शस्त्र की शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करता हूँ कि सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार, उनके उत्तराधिकारियों तथा मगध साम्राज्य की मै सदा प्रधान सेनापति के रूप मे सब प्रकार से भक्तिपूर्वक सेवा करूँगा । " उनके पश्चात् राज्य के अन्य सभी अधिकारियो ने सम्राट् के प्रति राजभक्ति की शपथ ली । इस प्रकार राज्यारोहण विधि के समाप्त होने पर सम्राट् एक विशाल जुलूस के साथ हाथी पर बैठकर सारे गिरिव्रज मे घूमे । उस समय उनके सिर पर राजमुकुट लगा हुआ था । एक सामत उनके सिर पर छत्र लगो रहा था तथा अन्य दो सामत उनके पीछे बैठे हुए उन पर चॅवर डुला रहे थे । नगर की 1 परिक्रमा करके सम्राट् उसी जुलूस के रूप में नगर के उत्तर की ओर के मैदान मे पहुँचे । यहा मगध की सारी सेनाएँ एकत्रित खडी हुई थी । इस समय तक उनका प्रत्येक सैनिक तथा सेनाधिकारी सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार के प्रति राजभक्ति की शपथ ले चुका था । सम्राट् के मैदान मे पहुँचने पर शाही सेनाओ ने सम्राट् का जय-जयकार करके उनको सैनिक रूप से अभिवादन किया । इसके पश्चात् सम्राट् उसी प्रकार के जुलूस मे वापिस राजमहल आए । R
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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