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________________ नन्दिग्राम पर कोप गिरिव्रज के इस सारे वृत्तान्त को उसी दिन सम्राज्ञी नन्दिश्री के पास भिजवा दिया गया । इस सवाद को सुनकर सेठ जी ने भारी प्रसन्नता मनाई । रात को यहा तथा गिरिव्रज मे प्रत्येक घर मे असख्य दीपक जलाकर खुशी मनाई गई । अगले दिन सम्राट् ने राज्यसभा मे बैठकर सारे साम्राज्य के कार्य का हिसाब पदाधिकारियो से लिया । उसी हिसाब में वह धन भी लिखा हुआ था, जो राज्य की ओर से नन्दिग्राम के ब्राह्मणो को अतिथि सेवा के लिये दिया जाता था | तब सम्राट् बोले “मै निर्वासित अवस्था मे नन्दिग्राम जाकर स्वयं यह देख आया हूँकि वहा के ब्राह्मण इस धन का सदुपयोग नही करते । इस धन के दिये जाने का प्रयोजन यह है कि उस ग्राम मे जाने वाले प्रत्येक अतिथि को इस धन से निशुल्क भोजन दिया जावे। किन्तु वहा के ब्राह्मण इस धन का उपयोग केवल अपने आदमियो के लिये करते है और बाहिर के अतिथियो को इससे भोजन नही दिया जाता, यहा तक कि उन्होने हमको भी दिया था । अतएव इन ब्राह्मणो को पकड़ कर राजदण्ड देना चाहिये ।" भोजन देने से इन्कार कर इस पर वर्षकार बोले " सम्राट् का कथन विल्कुल ठीक है । किन्तु महाराज स्वय विचार करे कि कल ही सिहासन पर बैठकर आज अगले ही दिन आपका किसी पर कोप करना उचित नही है । यदि आप नन्दिग्राम के ब्राह्मणो को दण्ड ही देना चाहते है तो उन पर कुछ और अपराध लगा कर उन्हे दण्ड दे ।” बिम्बसार - हा, वर्षकार । तुम्हारी बात ठीक है। अच्छा, उनके पास एक बकरा तोल कर भेज दो और कहला दो कि इसको खूब खिलाया पिलाया जाये । ११३
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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